Book Title: Markandeya Puran Ek Adhyayan
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 139
________________ ( 118 ) से जन्म पाकर मनुका पद प्राप्त करोगे तथा सावर्णि नाम से तुम्हारी ख्याति होगी और वैश्य ! तुम भी अपनी इच्छा के अनुसार उत्तम ज्ञान प्राप्त कर परमसिद्धि से सम्पन्न होगे चौरानबेवाँ अध्याय इस अध्याय में नवें मनु दक्ष पुत्र सावर्णि, दशवें मनु ब्रह्मपुत्र धीमान, ग्यारहवें मनु धर्मपुत्र सावर्णि, बारहवें मनु रुद्रपुत्र सावर्णि तथा तेरहवें मनु रौच्य के शासन-काल के देवता, इन्द्र, ऋषि, और राजवंशों का उल्लेख किया गया है। पञ्चानबेवाँ अध्याय इस अध्याय में तेरहवें मनु रौच्य की जन्म-कथा का उपक्रम किया गया है। इसमें प्रजापति रुचि और पितरों का संवाद बड़ा रोचक है। रुचि को निराश्रम और असङ्ग देख कर पितरों ने उनसे कहा-"वत्स ! तुमने गृहस्थाश्रम का परित्याग कर अच्छा नहीं किया / गृहस्थाश्रम स्वर्ग और मोक्ष का साधन है। मनुष्य गृहस्थाश्रम में रह कर ही देवता, पितर, ऋषि तथा अतिथियों के प्रति अपने कर्तव्य का पालन कर उत्तम लोकों की प्राप्ति कर सकता है, अन्यथा नहीं | यह सुन रुचि ने कहा कि "श्रात्मसंयम ही मोक्ष का साधन है और वह परिग्रह से नहीं सम्पन्न होता किन्तु पूर्ण नियन्त्रण से ही सिद्ध होता है। मनुष्य की आत्मा अनेक जन्म के कर्म-कर्दम से लिप्त है, इन्द्रियों को नियन्त्रित कर सद्वासना रूपी जल से ही उसका प्रक्षालन हो सकता है।" इस पर पितरों ने कहा-“यह बात ठीक है कि आत्मा के शोधनार्थ इंन्द्रियों का नियन्त्रण श्रावश्यक है पर साथ ही यह भी सत्य है कि देवताओं और पितरों के ऋण से मुक्ति पाये बिना मोक्ष की प्राप्ति असम्भव है। अतः उचित यह है कि मनुष्य गृहस्थाश्रम में प्रविष्ट हो अाश्रम-कर्मों का अनुष्ठान कर उक्त ऋणों से मुक्ति प्राप्त करे और कर्म-फल में आसक्ति का परित्याग कर उनके बन्धनों से बचता रहे / क्योंकि इस युक्ति के बिना मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति कथमपि संभव नहीं है / इस पर रुचि ने कहा कि "वेद में कर्म-मार्ग को अविद्या कहा गया है फिर उस मार्ग पर चल कर मनुष्य विद्यासाध्यमोक्ष की प्राप्ति कैसे कर सकता है / इस पर फिर पितरों ने कहा-"यह सत्य है कि कर्म अविद्या है पर साथ ही यह

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