Book Title: Markandeya Puran Ek Adhyayan
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 162
________________ ( 141 ) यह भी आवश्यक है कि वह सब श्रोर कई गुप्तचर लगाये रक्खे, और गुप्तचर एक दूसरे से परिचित न हों। उनके द्वारा यह जानने की चेष्टा करे कि कोई राजा अपने साथ की हुई सन्धि का भङ्ग तो नहीं कर रहा है। राजा अपने समस्त मन्त्रियों पर भी गुप्तचर रक्खे / राजा को चाहिये कि वह इन सब कार्यों में सदा मन लगाते हुये अपना समय व्यतीत करे न कि दिनरात विषयभोग में लिप्त रहे / राजाओं का शरीर भोग भोगने के लिये नहीं होता वह तो पृथ्वी तथा स्वधर्म के पालन के निमित्त क्लेश सहने के लिये होता है / पृथ्वी और स्वधर्म के पालन में राजा को जो कष्ट होता है उसी से उसे इस लोक में कीर्ति और परलोक में अक्षय सुख की प्राप्ति होती है / तुम इस बात को समझो और भोगों को त्याग कर पृथ्वी के पालन का कष्ट उठावो / तुम्हारे शासनकाल में ऋषियों को जो सर्पो से कष्ट हुअा है, उसे तुम नहीं जानते। इससे प्रतीत होता है कि तुम गुप्तचर रूपी नेत्र से अन्धे हो | अधिक कहने से क्या ? तुम दुष्टों को दण्ड दो और सजनों का पालन करो। इससे तुम्हें प्रजा के धर्म का छठा भाग प्राप्त होगा। यदि तुम प्रजा की रक्षा न करोगे तो दुध लोग उद्दण्ड होकर जो कुछ पाप करेंगे वह सब तुम्हीं को भोगना पड़ेगा | यह जान कर तुम जैसा चाहो वैसा करो"। .. पितामही का यह सन्देश सुनकर राजा मरुत्त को बड़ी लज्जा हुई / अपनी असावधानी के लिये उसने अपने को धिक्कारा और धनुष-वाण लेकर तत्काल और्व के आश्रम पर पहुँचा / पितामही तथा ऋषिजनों को प्रणाम किया। सों से डंसे मुनि-पुत्रों को देख अपनी निन्दा की और सों का संहार करने की प्रतिज्ञा की। सपों का विनाश करने के लिये उसने संवर्तक नामक अस्त्र को उठाया / उस अस्त्र का प्रयोग होते ही सारा नागलोक जलने लगा / सारे नागवंश में हाहाकार मच गया / सर्पो ने पाताल को छोड़ पृथ्वी पर aa मरुत्त की माता भामिनी को शरण ली और उन्हें स्मरण दिलाया- "जब पाताल में हम लोगों ने आप का सत्कार किया था तब श्राप ने हमें अभयदान दिया था / सो अब उसके पालन का समय आ गया है / श्राप के पुत्र महाराज मरुत्त हम लोगों को अपने अस्त्रतेज से दग्ध कर रहे हैं / आप कृपा कर उनसे हमारी रक्षा करें' ? भामिनी ने अपने वचन का स्मरण कर अपने पति से कहा"स्वामिन् ! मैं पहले ही आप को बता चुकी हूँ कि नागों ने पाताल में मेरा सत्कार करके मेरे पुत्र से प्राप्त होने वाले भय की चर्चा की थी और मैंने उनकी

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