Book Title: Markandeya Puran Ek Adhyayan
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 151
________________ (130 ) का प्रयोग करके भी राक्षस कुछ न कर सका / जब मूसल का प्रयोग विफल हो गया तब उसने अन्यान्य अस्त्रों का प्रयोग करके युद्ध किया / पर अन्त में वत्सप्री ने आग्नेय अस्त्र के प्रहार से उसे मृत्यु का कवल बना दिया / तदनन्तर वत्सप्री ने राजा विदूरथ की सन्तानों को मुक्त कर उन्हे राजा के समक्ष ला खड़ा किया। राजा ने प्रसन्न हो अपनी पूर्व घोषणा के अनुसार वत्सप्री के साथ अपनी कन्या मुदावती का विवाह कर दिया। कुछ काल के बाद उसके पिता भनन्दन ने उसे राज्यासन पर अभिषिक्त किया और स्वयं तपस्या के हेतु जंगल चला गया / एक सौ सत्रहवां अध्याय सुनन्दा-मुदावती ने बारह पुत्र उत्पन्न किये जिनमें ज्येष्ठ पुत्र प्रांशु को राज्याधिकार प्राप्त हुआ और शेष ग्यारह उसके वशवर्ती हो कर प्रेमपूर्वक रहने लगे। प्रांशु के पांच पुत्र पैदा हुए-खनित्र, शौरि, उदावसु, सुनभ और महारथ / इनमें ज्येष्ठ होने के कारण खनित्र ही पृथ्वी का राजा हुया, इसकी यह लालसा थी कि नन्दन्तु सर्वभूतानि नियन्तु विजनेष्वपि / स्वस्त्यस्तु सर्वभूतेषु निरातङ्कानि सन्तु च // 12 // मा व्याधिरस्तु भूतानामाधयो न भवन्तु च | मैत्रीमशेषभूतानि पुष्यन्तु सकले जने // 13 // शिवमस्तु द्विजातीनां प्रीतिरस्तु परस्परम् / समृद्धिः सर्ववर्णानां सिद्धिरस्तु च कर्मणाम् // 14 // सब प्राणी सुखी हों और अन्यजनों में भी स्नेह रक्खें; सब जीवों का कल्याण हो तथा उन्हें किसी प्रकार का कोई अातङ्क न हो // 12 // प्राणियों को कोई शारीरिक रोग तथा मानसिक चिन्ता न हो; सब लोग सब के मित्र हों // 13 // ब्राह्मणों का कल्याण हो तथा उनमें परस्पर प्रीति हो; सब वर्ण समृद्ध और सफलकर्मा हों // 14 // प्रजावर्ग को इसकी शिक्षा थी कि हे लोकाः ! सर्वभूतेषु शिवा वोऽस्तु सदा मतिः / यथाऽऽत्मनि तथा पुत्रे हितमिच्छथ सर्वदा // 15 // तथा समस्तभूतेषु वर्तध्वं हितबुद्धयः। एतद्वो हितमत्यन्तं को वा कस्यापराध्यति ? // 16 / /

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