Book Title: Markandeya Puran Ek Adhyayan
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 159
________________ ( 138 ) एक दिन राजकुमार शिकार खेलने के लिये जङ्गल गया। वहाँ उसने किसी नारी का श्रार्तनाद सुना। वह विलाप करती हुई कह रही थी-"मैं महाराज करन्धम के पुत्र अवीक्षित की पत्नी हूँ, यह नीच दानव मुझे हरकर ले जा रहा है। उसकी बात सुनकर राजकुमार विचार करने लगा -"मैं तो श्राजन्म ब्रह्मचारी हूँ, फिर यह मेरी पत्नी कैसे हुई ? अच्छा, यह बात तो बाद में सोची जायगी, अभी तो इसकी रक्षा करना आवश्यक है " / यह निश्चय कर उसने उस दानव पर आक्रमण किया, दोनों में घोर युद्ध हुअा | अन्त में राजकुमार ने उसे मार डाला। उसके वध से प्रसन्न हो देवगण वहाँ उपस्थित हो गये और राजकुमार से कहे- "राजकुमार ! दानव को मारकर जिस नारी का तुम ने उद्धार किया है वह राजा विशाल की कन्या और तुम्हारी भार्या है, इसके गर्भ से तुम्हें एक चक्रवर्ती पुत्र पैदा होगा"। देवगण के चले जाने के बाद नारी ने राजकुमार से कहा-"नाथ ! जब आपने मेरा परित्याग कर दिया तब मैं घरबार छोड़कर तपस्या करने के लिये जंगल चली आयी। जब तपस्या करते करते मेरा शरीर सूख गया तब मैं इसे छोड़ देने को उद्यत हुयी। उसी समय एक देवदूत ने आकर कहा-"देवि ! तुम्हारे शरीर से चक्रवर्ती पुत्र का जन्म होने वाला है अतः तुम उसका त्याग मत करो"। देवदूत की इस भविष्य वाणी पर विश्वास कर श्राप के दर्शन की आशा से मैंने शरीरत्याग का विचार छोड़ दिया। राजकन्या की बात सुन कर राजकुमार को माता के 'किमिच्छक' व्रत के अवसर पर पिता को दिये गये अपने वचन का स्मरण हो आया, तब उसने राजकन्या से कहा-"देवि ! पहले शत्रुओं से पराजित होने के कारण मैंने तुम्हारा त्याग किया था, अब तो शत्रु को मार कर मैंने तुम्हें प्राप्त किया है, तुम्हीं बताश्रो कि अब क्या करूँ / इतने में मय नामक गन्धर्व अप्सराओं सहित श्राकर राजकुमार से कहा--"राजकुमार ! यह कन्या वास्तव में मेरी पुत्री भामिनी है। महर्षि अगस्त्य के शाप से इसे राजा विशाल की पुत्री होना पड़ा / इसे अपनी पत्नी बनाकर इससे चक्रवर्ती पुत्र पैदा कीजिये। यह सुन राजकुमार ने विधिवत् उसका पाणिग्रहण किया। थोड़े दिन बाद वैशालिनी के गर्भ से एक पुत्र का जन्म हुआ। तदनन्तर राजकुमार अपनी पत्नी और शिशु के साथ अपने नगर गया और पिता को प्रणाम कर कहा-- "पिता जी ! मैंने माता जी के 'किमिच्छक' व्रत के अवसर पर जो प्रतिज्ञा की थी वह मैंने पूरी कर दी। लीजिये, अब आप अपने अङ्क में पौत्र का मुख देखिये " / यह कह राजकुमार ने पत्नी और पुत्र की प्राप्ति का सारा वृत्तान्त

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