Book Title: Markandeya Puran Ek Adhyayan
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 135
________________ ( 114 ) चौरासीवाँ अध्याय इस अध्याय में समस्त असुर-कुल और उसके नायक महिषासुर के वध से प्रसन्न हुये देवताओं द्वारा की गई देवी की स्तुति का उल्लेख किया गया है। इस स्तुति से देवी के स्वरूप का अच्छा परिचय प्राप्त होता है। इस स्तुति में बताया गया है कि देवी ने ही अपनी शक्ति से सारे जगत् का विस्तार किया है। उनकी महिमा का परिच्छेद ब्रह्मा, विष्णु, और महेश भी नहीं कर सकते / देवी ही पुण्यवानों की लक्ष्मी, पापियों की दरिद्रता, बुद्धिमानों की बुद्धि, सत्पुरुषों की श्रद्धा और कुलीनों की लज्जा हैं / वही जगत् का कारण अव्याकृता प्रकृति, देवताओं और पितरों की स्वाहा एवं स्वधा तथा मोक्षकाम को मोक्षप्रदान करनेवाली परमा विद्या हैं / देवी ही ऋक्, यजु, और साम की शब्दमयी मूर्ति, सम्पूर्ण जगत् का कष्ट काटनेवाली वार्ता, समस्त शास्त्रों के रहस्य का प्रकाश करनेवाली सरस्वती, भवसागर से उद्धार करनेवाली दुर्गा, विष्णु के हृदय में निवास करनेवाली लक्ष्मी और शिव के शिर पर विराजनेवाली गौरी हैं / उनकी शक्ति और उनका बल अपार है / वह दृष्टिमात्र से ही समस्त असुरों का संहार कर सकती हैं / यह उनकी कृपा थी कि उन्होंने शस्त्राघात से पापात्मा असुरों को पवित्र कर उन्हें सद्गति देने के निमित्त युद्ध का अाडम्बर किया। स्तुति से प्रसन्न हो उन्होंने देवताओं को वरदान दिया कि जब भी वे उनका स्मरण करेंगे तब वे इसी प्रकार उनके कष्टों का निवारण करती रहेंगी। पचासीवाँ अध्याय इस अध्याय में यह कथा है कि शुम्भ और निशुम्भ के अन्याय और अत्याचार से पीड़ित देवताओं ने अपनी सहायता के हेतु महामाया की स्तुति की। वह स्नानार्थिनी के वेष में प्रकट हो देवताओं से पूछने लगी “श्राप लोग किस की स्तुति कर रहे हैं ?" उसी समय उनके शरीर से शिवा प्रकट हुई और कौशिकी नाम से ख्यात हुई और शिवा के शरीर से निकल जाने के कारण पार्वती कृष्णवर्ण होकर कालिका नाम से ख्यात हुई। शिवा ने बताया कि ये देवता शुम्भ से उत्पीड़ित होकर मेरी स्तुति कर रहे हैं / उस समय शुम्भ के भृत्य चण्ड-मुण्ड ने शिवा के परम अभिराम रूप को देखा और उन्होंने शुम्भ से उनकी असाधारण सुन्दरता का वर्णन कर उन्हें श्रायत्त करने के लिये शुम्भ को उसकाया / शुम्भ ने सुग्रीव नामक दूत से शिया के पास प्रणय-सन्देश भेजा।

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