Book Title: Markandeya Puran Ek Adhyayan
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 145
________________ ( 124 ) का प्रवेश होने से अश्विनी कुमारों की तथा पृथ्वी पर गिरे रेतस से रेवन्त की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात् दोनों ने अपने वास्तविक रूप में प्रकट होकर परम आनन्द प्राप्त किया। सूर्यदेव ने संज्ञा, छायासंज्ञा तथा अश्वारूपिणी संज्ञा से उत्पन्न हुई अपनी सभी सन्तानों के लिये स्थान और अधिकार की अलग अलग व्यवस्था कर दी। एक सौ नववाँ अध्याय इस अध्याय में सूर्य देव की महिमा के प्रसंग में एक मनोरम कथा अङ्कित की गई हैं जो इस प्रकार है पूर्वकाल में दम के पुत्र राज्य-वर्धन बड़े विख्यात राजा थे, वे धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते थे। उनके राज्य में धन-जन की अहर्निश वृद्धि होती थी। सारी प्रजा स्वस्थ, सुप्रसन्न, सम्पन्न और साक्षर थी। रोग, उत्पात, अकाल आदिका कोई भय न था। दक्षिण देश के राजा विदूरथ की पुत्री मानिनी उनकी पत्नी थी। एक दिन राजा के शिर में तेल लगाते समय वह एकाएक रो पड़ी। रोने का कारण पूछने पर उसने राजा के काले केश समूह में एक पके हुये बाल को अपने दुःख का कारण बताया / तब राजा ने हँसते हुये कहा-"प्रिये देहधारियों के स्वाभाविक विकार हैं | मैंने तो समस्त वेद विद्याओं का अध्ययन किया, सहस्रों यज्ञ किये, तुम्हारे साथ अनेकानेक उत्तमोत्तम भोग भोगे, अनेकों पुत्र पैदा किये, सात सहस्र वर्ष तक सुन्दर शासन द्वारा प्रजाको सुखी और स्वस्थ रक्खा / इस समय बाल का पकना बड़े भाग्य की बात है / इससे वानप्रस्थ में प्रवेशकर वह श्रेष्ठ तप करने की प्रेरणा मिलती है जिस पर मानवजन्म की चरितार्थता निर्भर है। अपने अन्य पार्श्ववर्ती जनों को सम्बोधित कर राजा ने कहा- "भाइयो! यह पका बाल क्रूरकर्मा मृत्यु का दूत है जो यह सन्देश सुना रहा है कि यमराज के सैनिक मुझ पर अाक्रमण करनेका विचार कर रहे हैं, अतः मुझे राज्यशासन का दायित्व पुत्रों को सौप कर विषयभोग से निवृत्त हो वन का आश्रय लेना चाहिये। राजा की बात सुनकर सारी प्रजा अाकुल हो उठी और राजा से प्रार्थना करने लगी कि वे वनगमन का विचार न करें अपितु पहले की भाँति ही पृथ्वी का शासन करते रहें / उस समय सब लोगों ने यह निश्चय किया कि राजा की आयु बढ़ाने के लिये सूर्य देव की सामूहिक श्राराधना की जाय | इस निश्चय के अनुसार सुदामा नामक गन्धर्व की सम्मति

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