________________ ( 80 ) वाद्य श्रादि अन्य काम्य वस्तुयें, मेरे मतानुसार ये सब पुण्यरूपी वनस्पति के फल है / इसलिये मनुष्य को संयतचित्त होकर उस पुण्य-वृक्ष के ही मूल को सींचने का प्रयत्न करना चाहिए, क्योंकि पुण्यवानों को संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं होती // 20, 21, 12 // पचीसवाँ अध्याय ___ राजकुमार जब मदालसा के साथ अपने नगर में पहुँचे और दिवंगता मदालसा की पुनः प्राप्ति का सारा समाचार सुनाये तो पूरे नगर में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। कुछ दिन बाद राजा शत्रुजित् का स्वर्गवास हो गया। प्रजा ने राजकुमार ऋतध्वज को राज्यासन पर अभिषिक्त किया। ऋतध्वज औरसपुत्र के समान प्रजा का पालन करने लगे। थोड़े दिन बाद मदालसा ने एक पुत्र पैदा किया। राजा ने उसका नाम रखा 'विक्रान्त'। मदालसा बड़ी विदुषी थी, अतः जब कभी बालक पलंग पर पड़े-पड़े रोने लगता था तब उसे पुचकारने एवं बहलाने के बहाने वह उसे अध्यात्म का उपदेश देती थी। उसके उपदेश निम्नाङ्कित हैं :शुद्धोऽसि रे तात ! न तेऽस्ति नाम कृतं हि ते कल्पनयाऽधुनैव / पश्चात्मकं देहमिदं तवैतन्नैवास्य त्वं रोदिषि कस्य हेतोः ? // 11 // न वा भवान् रोदिति वै स्वजन्मा शब्दोऽयमासाद्य महीशसूनुम् / विकल्प्यमाना विविधा गुणास्तेऽगुणाश्च भौताः सकलेन्द्रियेषु // 12 // भूतानि भूतैः परिदुर्बलानि वृद्धिं समायान्ति यथेह पुंसः / अन्नाम्बुदानादिभिरेव कस्य न तेऽस्ति वृद्धिर्नच तेऽस्ति हानिः॥१३॥ त्वं कचुके शीर्यमाणे निजेऽस्मिन् तस्मिश्च देहे मूढ़तां मा व्रजेथाः। शुभाशभैः कर्मभिर्देहमेतन्मदादिम्डैः कञ्चकस्ते पिनद्धः॥१४॥ तातेति किश्चित्तनयेति किश्चदम्वेति किञ्चिद्दयितेति किश्चित् / / ममेति किञ्चिन्न ममेति किश्चित् त्वं भूतसंघं बहु मानयेथाः // 15 // दुःखानि दुःखोपशमाय भोगान् सुखाय जानाति विमूढचेताः / तान्येव दुःखानि पुनः सुखानि जानात्यविद्वान् सुविमूढचेताः // 16 // हासोऽस्थिसन्दर्शनमक्षियुग्ममत्युज्ज्वलं तर्जनमङ्गनायाः। कुचादि पीनं पिशितं घनं तत् स्थानं रतेः किं नरकं न योषित् ? // 17 // यानं क्षितौ यानगतं च देहं देहेऽपि चान्यः पुरुषो विमूढः।। ममत्वबुद्धिन तथा यथा स्वे देहेऽतिमानं बत मूढतैषा // 18 //