________________ ( 111 ) गुरु का संवाद तथा अानन्द और ब्रह्मा का संवाद बड़ा मनोरम और उपदेशपूर्ण है। सतहत्तरवा अध्याय इस अध्याय में वैवस्वत मन्वन्तर के वर्णन का उपक्रम किया गया है और उसके प्रसंग में वैवस्वत, यम, यमुना, सावर्णिक, शनैश्चर, और तपती के जन्म का वर्णन किया गया है। इनमें प्रथम तीन की उत्पत्ति सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा, जो पत्नी छाया-संज्ञा से हुई थी। इस अध्याय में अपनी पुत्री छाया के प्रति विश्वकर्मा का निम्नाङ्कित वचन बड़ा व्यावहारिक है। बान्धवेषु चिरं वासो नारीणां न यशस्करः / मनोरथो बान्धवानां नार्या भर्तृगृहे स्थितिः // 16 // स्त्रियों का बहुत दिन तक पिता के घर बन्धु-बान्धवों के बीच रहना यशस्कर नहीं होता। उनका अपने पति के घर रहना ही बन्धु-बान्धवों को अभीष्ट होता है। अठहत्तरवाँ अध्याय इस अध्याय में देवताओं द्वारा सूर्यदेव का बड़ा उत्तम वर्णन है। उसमें बताया गया है कि सूर्य समस्त जगत् के कारण हैं / सारा ब्रह्माण्ड उन्हीं की गति से गतिमान होता है। रात और दिन को प्रवृत्ति भी उन्हीं की गति पर निर्भर है। उनकी किरणों के सम्पर्क के विना किसी वस्तु में शुचिता नहीं श्रा सकती / समस्त वेद उन्हीं से प्रादुर्भूत हुये हैं और सब प्रकार के काल-व्यवहार हुई सूर्य की पत्नी छाया की नासिका से दो अश्विनीकुमारों की तथा उस अवसर पर पृथ्वी पर गिरे सूर्य के वीर्य से रेवन्त की उत्पत्ति बतायी गयी है / अध्याय के अन्तिम भाग में बताया गया है कि संज्ञा से उत्पन्न हुये सूर्य की सन्तानों में प्रथम वैवस्वत ने मनु का पद तथा द्वितीय पुत्र यम ने प्राणिमात्र के धर्मद्रष्टा धर्मराज का पद प्राप्त किया। और तीसरी सन्तान कन्या यमुना नदी बन कर कलिन्द देश में प्रवाहित हुई | अश्विनीकुमार देवताओं के चिकित्सक हुये / रेवन्त गुह्यकों का राजा हुा / और छाया-संज्ञा से उत्पन्न सन्तानों में प्रथम