Book Title: Markandeya Puran Ek Adhyayan
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 147
________________ ( 126 ) वरुण ने उस पुत्री को ही पुत्र बना दिया जो सुद्यम्न नाम से ख्यात हुआ। एक दिन वन में शिकार खेलते समय उससे कुछ अपराध हो गया जिससे महादेव जी को क्रोध आ गया / उस क्रोध के फलस्वरूप सुद्युम्न को पुनः स्त्री हो जाना पड़ा / उस समय चन्द्रमा के पुत्र बुध ने उससे एक पुत्र पैदा किया जिसका नाम पुरुरवा रक्खा गया / तत्पश्चात् अश्वमेध यज्ञ करके सुद्यम्न ने पुनः पुरुषत्व प्राप्त कर लिया। फिर उसके उत्कल, विनय और गय नाम के तीन पुत्र पैदा हुये | सुद्युम्न के स्त्री रूप में बुध से पैदा होने के कारण पुरुरवा को राज्य का भाग नहीं मिला किन्तु वशिष्ठ जी की सम्मति से उसे प्रतिष्ठान नामक उत्तम नगर दे दिया गया / एक सौ बारहवाँ अध्याय इस अध्याय की कथा इस प्रकार है वैवस्वत मनु का पुत्र पृषध्र एक दिन मृगया के लिये जंगल गया। वहाँ एक अग्निहोत्री ब्राह्मण की गौ को गवय समझ कर उसने मार दिया। तब उस गौ की रक्षा में नियुक्त ब्राह्मण पुत्र बाभ्रव्य ने पृषध्र को शूद्र हो जाने का शाप दे दिया। शाप से राजा को क्रोध आ गया। वह भी ब्राह्मणपुत्र को शाप देने के लिये प्रस्तुत हुआ। इस पर ब्राह्मणपुत्र राजा का नाश करने के लिये दूसरा शाप देने को प्रवृत्त हुअा। उसी समय उसका पिता पहुँच गया और उसे शाप देने से विरत करते हुये कहा कि ब्राह्मण का भूषण क्षमा है न कि क्रोध / क्रोध से तो धर्म, अर्थ और काम इन सब की हानि होती है। दूसरी बात यह है कि यदि राजा ने इसे जान कर मारा हो तब भी अपने हित का विचार कर हमें राजा पर दया करनी चाहिये और यदि उसने अनजान में मारा हो तब तो उसका कोई अपराध ही नहीं है। और सच्ची बात तो यह है कि वह गौ अपनी श्रायु समाप्त कर अपने कर्म से मरी है, अतः राजा कथमपि शाप का पात्र नहीं है " / यह सुन ब्राह्मणपुत्र दूसरा शाप देने से विरत हो गया, पर पहले शाप के कारण पृषध्र को शूद्र होना पड़ा। ___ एक सौ तेरहवाँ अध्याय इस अध्याय की कथा यह है कि पूर्व काल में दिष्ट नाम के एक राजा थे, उनके नाभाग नाम का एक पुत्र था, उसने यौवन के प्रारम्भ में एक परम सुन्दरी वैश्य कन्या को देखा /

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