Book Title: Markandeya Puran Ek Adhyayan
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

View full book text
Previous | Next

Page 116
________________ ( 65 ) रहता / उस समय उनका केवल सदृश परिणमन होता है, विसदृश परिणमन का गन्ध भी नहीं होता। फिर जब यथासमय परमेश्वर के योग से प्रकृति में क्षोभ होता है तब पूर्व अध्याय में बताये गये क्रम से महत्तत्त्व से अण्ड पर्यन्त विकास होने के पश्चात् रजोगुण-प्रधान ब्रह्मा का प्राकट य होता है। उनके द्वारा समस्त सृष्टि की रचना होती है। फिर उस सृष्टि की रक्षा के निमित्त सत्त्वगुण के उत्कर्ष से विष्णु का तथा उसके लय के निमित्त तमोगुण के उद्रेक से रुद्र का प्राकटय होता है। जिस प्रकार एक ही खेतिहर बीज बोने, पौधा पालने और अन्त में फसल के काटने से वापक, पालक, लावक नामों से व्यवहृत होता है उसी प्रकार एक ही परमेश्वर जगत् की सृष्टि, स्थिति, और संहार करने के कारण ब्रह्मा, विष्णु, और महेश नामों से व्यवहृत होता है। __मनुष्य के एक वर्ष के बराबर देवता का एक अहोरात्र होता है। और देवताओं के बारह सहस्र वर्षों का एक चतुर्युग होता है, उनमें चार सहस्र पाठ सौ वर्षों का सत्ययुग, तीन सहस्र छ: सौ वर्षों का त्रेता, दो सहस्र चार सौ वर्षों का द्वापर और एक सहस्र दो सौ वर्षों का कलियुग होता है। बारह सहस्र दिव्य वर्षों की चतुर्युगी जब एक सहस्र बार बीत चुकती है तब ब्रह्मा का एक दिन होता है। ब्रह्मा के एक दिन में क्रमश: चौदह मनु होते हैं। प्रत्येक मन्वन्तर के अलग अलग इन्द्र, देवता, सप्तर्षि, मनु और मनुपुत्र होते हैं, जो साथ ही पैदा होते और साथ ही मरते हैं। एक मनु के जन्म से मृत्यपर्यन्त तक के काल को एक मन्वन्तर कहा जाता है / गणना करने से एक मन्वन्तर का काल एकहत्तर चतुर्युग तथा कुछ कम पाँच सहस्र तीन सौ तीन दिव्य वर्ष होता है। जब ब्रह्मा का एक दिन बीतता है तब उसी के बराबर उनकी एक रात्रि होती है / ब्रह्मा की इस रात्रि को ही नैमित्तिक प्रलय कहा जाता है / इस प्रकार की 360 दिन-रात्रि का ब्रह्मा का एक वर्ष होता है और ऐसे वर्ष से सौ वर्षों की ब्रह्मा की श्रायु होती है, ब्रह्मा के इन सौ वर्षों को पर और पचास वर्षों को परार्ध कहा जाता है। पहले परार्ध के अन्त में पद्म नामक महाकल्प हुआ था। इस समय दूसरे परार्ध का वाराह नामक प्रथम कल्प चल रहा है / सैंतालीसवाँ अध्याय इस अध्याय में बताया गया है कि पाद्मकल्प अर्थात् पहले परार्ध के बाद जो प्रलय हुआ था उसके पश्चात् जब ब्रह्मा जी सोकर उठे तब उन्होंने जगत् को शुन्य देखा फिर उनकी सहायता के हेतु श्रीविष्णु, जिसे विद्वानों ने नर से

Loading...

Page Navigation
1 ... 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170