Book Title: Markandeya Puran Ek Adhyayan
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

View full book text
Previous | Next

Page 167
________________ ( 146 ) असुरराज जम्भ ने अपने पिता को साँपों से डंसे जाने का समाचार सुन कर समस्त सों का विनाश कर दिया था। पराशर ने एक राक्षस के हाथ अपने पिता की मृत्यु होने की बात सुन कर सम्पूर्ण राक्षसों को अग्नि में झोंक कर भस्म कर दिया था। क्षत्रिय तो अपने वंश के साधारण व्यक्ति के छोटे से अपमान को भी नहीं सह पाते, फिर पिता का वध करने जैसे महत्तम अपराध को वे कैसे सह सकते हैं ? मेरी दृष्टि में यह तुम्हारे पिता का वध नहीं किन्तु तुम्हारा ही वध है। ऐसी स्थिति में वपुष्मान के परिजनों और कौटुम्बिकों के प्रति तथा स्वयं उसके प्रति जो तुम्हारा कर्तव्य हो उसे तुम तत्काल करो"। दम इस सन्देश को सुन क्रोध से जल उठा और उसने अपने तपस्वी * पिता के हत्यार वपुष्मान् तया उत्तक वजना, वापी काय करत का प्रतिज्ञा की। उसने निश्चय किया कि वपुष्मान् की ओर से यदि इन्द्र, यम, वरुण, कुबेर अथवा सूर्य भी युद्ध में उपस्थित होंगे तो वह उन्हें भी अपने तीदण वाणों से मार गिरायेगा। एक सौ छत्तीसवा अध्धाय उपर्युक्त प्रतिज्ञा कर दम ने अपने मन्त्रियों तथा पुरोहित से कहा-शूद्र तपस्वी के मुख से माता का सन्देश आप लोगों ने सुन लिया / अब युद्ध के लिये श्राप समस्त उपकरणों सहित सेना को तयार कीजिये। पिता के वैर का बदला लिये विना, पिता के हत्यारे को मारे विना और माता की आशा को पूर्ण किये विना मैं एक क्षण भी जीना नहीं चाहता" / मन्त्रियों ने तत्काल ही सेना तयार कर दी और दम ने ब्राह्मण-पुरोहितों का आशीर्वाद ले सुविशाल सेना के साथ घपुष्मान् का विनाश करने की कामना से प्रस्थान किया / वपुष्मान् के राज्य में पहुँच कर दम ने उसे युद्ध के लिये ललकारा / वपुष्मान् भी बहुत बड़ी सेना लेकर दम का सामना करने आगे बढ़ा। दोनों सेनाओं, दोनों सेनावों के सेनापतियों तथा दोनों नायकों में घोरतम युद्ध होने लगा। युद्ध * का मारता से सारा या का५ 70 / / म ने पहल वपुल्तान के पुत्री, माझ्या, सम्बन्धियों और मित्रों को मारा और बाद में उसे पृथ्वी पर पटक कर उसके शिर को पैर के नीचे दबा उसकी छाती चीर डाली। उसके वक्षःस्थल से

Loading...

Page Navigation
1 ... 165 166 167 168 169 170