Book Title: Markandeya Puran Ek Adhyayan
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 93
________________ पुरुषों द्वारा अर्जित करके घर में लाया हुश्रा भी धन भार्या के अभाव में अथवा कुभार्या के हाथ में पड़कर नष्ट हो जाता है / / 75 // ___ यह तो प्रत्यक्ष ही है कि भार्याहीन पुरुष को काम की प्राप्ति तो नहीं है होती, किन्तु वैदिक धर्म की प्राप्ति भी दम्पती के सहप्रयत्न से ही होती है // 7 // इसी लिये मनुष्य जिस प्रकार पुत्रों से पितरों को, अन्न से अतिथियों को तथा पूजा से देवताओं को रक्षित रखता है उसी प्रकार वह इन सब उपायों रे अपनी उत्तम भार्या को भी रक्षित रखता है // 77 // जिस प्रकार स्त्री के बिना पुरुष धर्म श्रादि को नहीं प्राप्त कर पाता, उर्स प्रकार स्त्री भी पुरुष के बिना धर्म, अर्थ और काम को नहीं प्राप्त कर पाती / इस लिये यह त्रिवर्ग निस्संशय दाम्पत्य पर ही निर्भर है // 78 // यदुपात्तं यशः पित्रा धनं वीर्यमथापि वा / तन्न हापयते यस्तु स नरो मध्यमः स्मृतः / / 65 // तद्वीर्यादधिकं यस्तु पुनरन्यन् स्वशक्तितः / / निष्पादयति तं प्राज्ञाः प्रवदन्ति नरोत्तमम् // 16 // यः पित्रा समुपात्तानि धर्मवीर्ययशांसि वै / न्यूनतां नयति प्राज्ञास्तमाहुः पुरुषाधमम् / / 67 // न स पुत्रकृतां प्रीतिं मन्ये प्राप्नोति मानवः / पुत्रेण नातिशयितो यः प्रज्ञादानविक्रमैः / / 18 // धिग् जन्म तस्य यः पित्रा लोके विज्ञायते नरः / यः पुत्रात् ख्यातिमभ्येति तस्य जन्म सुजन्मनः // 66 // आत्मना ज्ञायते धन्यो मध्यः पितृपितामहैः। मातृपक्षण मात्रा च ख्यातिमेति नराधमः // 10 // पिता द्वारा अर्जित यश, धन और वीर्य को जो घटने नहीं देता वह मध्यम कोटि का मनुष्य कहलाता है ||5|| जो अपनी शक्ति से पिता के वीर्य आदि से अधिक वीर्य आदि का सम्पादन करता है, बुद्धिमान् मनुष्य उसे उत्तम कोटि का मनुष्य कहते हैं // 66 // जो पिता के धन, वीर्य और यश को अपनी अकर्मण्यता अथवा विपरीतकर्मता से घटा देता है, बुद्धिमान् लोग उसे अधम कोटि का मनुष्य कहते हैं / प्रज्ञा, दान, और पराक्रम में अपने पुत्र द्वारा जिस पिता का अतिक्रमण नहीं होता, मैं समझता हूँ कि उस पिता को वह प्रीति नहीं होती, जिसकी अाशा वह अपने पुत्र से रखता है // 8 //

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