Book Title: Markandeya Puran Ek Adhyayan
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 152
________________ ( 131 ) यत्करोत्यहितं किञ्चित्कस्यचिन्मूढमानसः / तं समभ्येति तन्ननं कर्तृगामि फलं यतः / / 17 // इति मत्वा समस्तेषु भो लोकाः ? कृतबुद्धयः / सन्तु, मा लौकिकं पापं, लोकान् प्राप्स्यथ वै बुधाः?॥१८॥ प्रजाजनों ! तुम्हारी बुद्धि सब प्राणियों में कल्याणमयी हो / जिस प्रकार अपना और अपने पत्र का हित चाहते हो उसी प्रकार सब प्राणियों के लिये हित बुद्धि रक्खो / ऐसा करने से तुम्हारा अधिक हित होगा, क्योंकि जब सब लोग एक दूसरे के हितेच्छु होंगे तब कोई किसी के प्रति अपराध न करेगा // 15,16 // यदि कोई मूढचित्त मनुष्य किसी का कुछ अहित करेगा तो उसका परिणाम उसी को प्राप्त होगा, क्योंकि क्रिया का फल नियमेन कर्तृगामी होता है // 17 // प्रजाजनों ! यदि इस तथ्य को समझ कर तुम लोग परस्पर में हितबुद्धि रक्खोगे तो कोई भी सांसारिक बुराई न होगी और तुम सब लोग उत्तम लोकों को प्राप्त करोगे // 18 // इसने प्रजाजनों को बताया कि अपने विषय में तो मेरी यह अभिलाषा है यो मेऽद्य स्निह्यते तस्य शिवमस्तु सदा भुवि / यश्च मां द्वेष्टि लोकेऽस्मिन् सोऽपि भद्राणि पश्यतु // 16 // जो मुझ से अाज स्नेह करता है, मैं चाहता हूँ कि उसका सदैव कल्याण हो, और जो मुझसे द्वेष करता है, मैं चाहता हूँ कि उसका भी इस संसार में सर्वदा मङ्गल हो // ' राजा खनित्र का अपने भाइयों से बड़ा स्नेह था अतः उसने उन लोगों को भिन्न-भिन्न राज्यों का अधिपति बना दिया तथा उनके अलग-अलग मन्त्री और पुरोहित रख दिये / कुछ दिन बाद खनित्र के अनुज शौरि के मन्त्री विश्ववेदी ने शौरिको सम्मति दी कि वह अपने अन्य भाइयों का सहयोग प्राप्त कर खनित्र पर अाक्रमण करे और उसे पराजित कर स्वयं समस्त पृथ्वी का राजा बने / यदि वह ऐसा न करेगा तो जिस छोटे से राज्य का वह अधिपति है वह उसके पुत्र-पौत्रों में बँट कर क्षीण हो जायगा और अन्त में उसके वंशजों को कृषक का जीवन व्यतीत करना पड़ेगा। शौरि ने यह कह कर उसकी सम्मति न मानी कि जब हम पांच भाई हैं तो सबके सब किस प्रकार सारी पृथ्वी के राजा हो सकते हैं, अतः यह उचित ही हुआ है कि ज्येष्ट भाई सारी पृथ्वी के अधिपति हैं और हम चारो अनुज उनके अधीनस्थ राजा हैं / उसका

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