Book Title: Markandeya Puran Ek Adhyayan
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 157
________________ ( 136 ) आक्रमणकारी राजों और राजकुमारों से अवीक्षित का बड़ा घोर युद्ध हुअा / जब अवीक्षित के वाणों की वर्षा से सारा राजवर्ग व्यथित एवं व्याकुल होगया तथा उनकी सेनायें त्रस्त हो पलायन करने लगी तब सात सौ वीर क्षत्रियों ने मृत्यु की चिन्ता छोड़ कर चारो अोर से उसे घेर लिया और युद्ध के नियमो को तोड़ उसपर चारो ओर से अस्त्रप्रहार आरम्भ कर दिया। बहुत से वीरों के अधर्मपूर्वक युगपत् प्रहार का प्रतीकार न कर सकने के कारण वह भूमि पर गिर पड़ा। फिर राजाओं ने उसे बांधकर राजा विशाल के सामने ला खड़ा किया / राजा ने अपनी पुत्री को उपस्थित राजारों में से किसी को चुनने का पुनः निर्देश किया किन्तु उनमें से उसने किसी को न चुना / फलतः राजा ने उस दिन को अच्छा न समझ ज्योतिषी विद्वानों की सम्मति से स्वयंवर तथा विवाह का कार्य कालान्तर के लिये स्थगित कर दिया। जब राजा करन्धन को अपने पुत्र के बन्दी होने का समाचार मिला तब वह विचार करने लगा कि ऐसे समय क्या करना चाहिये 1 सामन्तों और राजात्रों ने अपनी भिन्न भिन्न सम्मतियाँ दीं। कई लोगों ने राजकुमार के बलपूर्वक कन्याहरण को अनुचित बताया / किन्तु रानी ने उन लोगों का विरोध करते हुये अपने पुत्र के कार्य को क्षत्रियोंचित बताया और युद्ध के लिये शीघ्र सन्नद्ध होने को उत्साहित किया / करन्धम ने विशाल सेना लेकर वैदिश को जा घेरा / राजा विशाल ने पहले तो युद्ध किया किन्तु बाद में हार मान कर अवीक्षित को मुक्त कर दिया और अर्घ्य के साथ करन्धम के सामने उपस्थित हो उसका पूजन किया तथा अवीक्षित से अपनी कन्या के पाणिग्रहण का प्रस्ताव किया | अवीक्षित ने यह कह कर प्रस्ताव को अमान्य कर दिया कि युद्ध में अन्य राजाओं ने मुझे पराजित कर दिया है अतः मैं इसे क्या, किसी स्त्री को ग्रहण न करूंगा और इसे तो कदापि न ग्रहण करूँगा क्योंकि इसने मेरी प्रत्यक्ष पराजय देखी है / यह सुन कर राजकन्या ने कहा कि मैं इनके सौन्दर्य और अद्भुत शौर्य से मुग्ध हूँ, जिसे ये अपनी पराजय समझते हैं वह मेरी दृष्टि में पराजय नहीं है, क्योंकि ये धर्मपूर्वक युद्ध कर रहे थे, दूसरे लोगों ने तो अधर्भ युद्ध करके इन्हें विवश किया है / अतः मेरा निश्चय है कि मैं इन्हीं से विवाह करूँगी, दूसरा कोई मेरा पति नहीं हो सकता / विशाल ने पुनः प्रार्थना की और करन्धम ने भी समर्थन किया। किन्तु अवीक्षित ने नम्रता किन्तु अत्यन्त दृढता से पुनः अस्वीकार कर दिया।

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