Book Title: Apstambparibhasha Sutram
Author(s): A Mahadev Shastri
Publisher: Government of Mysore

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काले-धिश्रयणमन्त्रेण तण्डुलानावपति ॥ २६ ॥ अनुसृत्य चरुमासादयति ॥ २७॥ पञ्चदश सामिधेन्यो दर्शपूर्णमासयोः ॥ २८ ॥ सप्तदशोष्टिपशुबन्धानां यत्र श्रूयन्ते ॥ २९ ॥ उपांशुकाम्या इष्टयः क्रियन्त इति तत्र यावत्प्रधानमुपांशु ॥३०॥ दर्शपूर्णमासाविष्टीनां प्रकृतिः ॥ ३१ ॥ अनीषोमीयस्य च पशोः ॥ ३२॥ स सवनीयस्य ॥ ३३॥ सवनीय ऐकादशिनानाम् ॥ ३४ ॥ ऐकादशिनाः पशुगणानाम् ॥ ३५ ॥ वैश्वदेवं वरुणप्रघाससाकमेधशुनासीरीयाणाम् ॥ ३६ ॥ वैश्वदेविक एककपाल एककपालानाम् ॥ ३७॥ वैश्वदेव्यामिक्षा2-2..मिक्षाणाम् ॥ ३८ ॥ तत्र सामान्याद्विकारो गम्येत ॥३९॥ एकदेवता आनेयविकाराः ॥ ४०॥ द्विदेवता अमीषोमीयविकाराः ॥ ४१ ॥ बहुदेवताश्च ॥ ४२॥ ऐन्द्रामविकारा वा ॥४३॥ अन्यत्र प्रकृतिदेवताभ्यो यथैन्द्रः पुरोडाशस्सौम्यश्चरुरिति ॥४४॥ हविर्देवतासामान्ये हविर्बलीयः ॥ ४५ ॥ द्रव्यसंस्कारविरोधे द्रव्यं बलीयः ॥ ४६॥ अर्थद्रव्यविरोधेटर्थो बलीयान् ॥ १७॥ न प्रकृतावूहो विद्यते ॥४८॥ विकृतौ यथार्थमूहो-र्थवादवर्जम् ॥ ४९॥ परवाक्यश्रवणादर्थवादः ॥ ५० ॥ शिष्टाभावे सामान्यात्प्रतिनिधिः ॥ ५१. ॥ तद्धर्मा च स्यात् ॥ ५२॥ मात्रापचारे तच्छेषेण समाप्नुयात् ॥ ५३॥ चतुर्थः खण्डः. स्वामिनोगेर्दैवतायाइशब्दात्कर्मण: प्रतिषेधाच्च प्रतिनिधिनिवृत्तः ॥ १॥ त्रिभिः कारणैः प्रकृतिर्निवर्तते प्रत्याम्नानात्म C. For Private and Personal Use Only

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