Book Title: Apstambparibhasha Sutram
Author(s): A Mahadev Shastri
Publisher: Government of Mysore

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिषेधादर्थलोपाच ॥ २॥ अग्निष्टोम एकाहानां प्रकृतिः ॥ ३॥ द्वादशाहो2 हर्गणानाम् ॥ ४॥ गवामयनं सांवत्सरिकाणाम् - ॥ ५॥ निकायिनां तु प्रथमः ॥ ६॥ अमिष्टोम उत्तरवेदिः ॥ ७॥ उत्तरेषु ऋतुष्वनिरन्यत्र साद्यस्वेभ्यो वाजपेयाखोडशिनः सारस्वताच सत्रात् ॥ ८॥ क्रत्वादौ क्रतुकामं कामयेत ॥ ९॥ यज्ञाङ्गादौ यज्ञाङ्गकामम् ॥ १०॥ अल्पीयांसो मन्त्राः भूयांसि कर्माणि तत्र समशः प्रविभज्य पूर्वैः पूर्वाणि कारयेदुत्तरैरुत्तरणि ॥ ११ ॥ अल्पीयांसि कर्माणि भूयांसो मन्त्रास्तत्र प्रतिमन्त्रं कुर्यादवशिष्टा विकल्पार्था यथा यूपद्रव्याणीति ॥ १२॥ अन्तालोपो विवृद्धिर्वा ॥ १३ ॥ प्रकृतेः पूर्वोक्तत्वादपूर्वमन्ते स्यात् ॥ १४ ॥ कुम्भीशूलवपापणि प्रभूत्वात्तन्त्रं स्यात् ॥ १५॥ जातिभेदे तु भिद्येत पक्तिवैषम्यात् ॥ १६ ॥ स्विष्टकृद्विकारे वनस्पती याज्यायां देवतानिगमास्स्युः प्रकृत्युपबन्धात् ॥ १७॥ अन्वारम्भणीया विकृतौ न स्यात्प्रकृतिकालमध्यत्वात्कृता हि तदर्थेन ॥ १८ ॥ स्याद्वा कालस्याशेषभूतत्वात् ॥ १९ ॥ आरम्भविभागाच ॥२०॥ अयार्थायामिं प्रणयत्यपवृत्ते कर्मणि लौकिकस्सम्पद्यते यथासमारूढे ॥ २१ ॥ For Private and Personal Use Only

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