Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

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Page 7
________________ के पश्चात् सं० १२४२ में चौहान समरसिंह के राज्य में भंडारी पासु पुत्र यशोवीर ने जीर्णोद्धार कराया सं० १२५६ में तोरणादि की प्रतिष्ठा हुई । सं० १२६८ के प्रेक्षामण्डप आदि बने एवं स्वर्णमय कलशारोपण हुंआ सं० १२९६ के आबू में लेखानुसार अष्टापद मंदिर से संलग्न आदिनाथ देवकुलिका नागोर के श्रेष्ठ लाहड़ ने तथा प्रतिमायुक्त दो खत्तक श्रेष्ठी देवचंद ने बनाये थे । यहाँ कुकुमरोला नामक जिनालय पार्श्वनाथ भगवान का था । जिनपाल उपाध्यायकृत खरतर गच्छ वृहद् गुर्वावली से विदित होता है कि सं० १३१६ माघ सुदि ६ को राजा चाचिंगदेव के राज्यकाल में शांतिनाथ जिनालय पर स्वर्णमय ध्वज दण्ड कलश स्थापित किये गये थे श्रावक धर्म प्रकरण नामक लक्ष्मीतिलकोपाध्यायकृत सचित्र ताड़पत्रीय ग्रन्थ में शांतिनाथ जिनालय का चित्र है जिसे पं० श्री शीलचन्द्रविजयजी महाराज ने संपादित कर प्रकाशित किया है उसमें से यहाँ के शांतिनाथ जिनालय का चित्र और ग्रन्थ लिखाने वाले तीन भ्राताओं के सपत्नीक चित्र को इस ग्रन्थ में साभार प्रकाशित किया जा रहा हैं । इस प्रकार इस महातीर्थ की उन्नत अवस्था दिल्लीपति अलाउद्दीन खिलजी के १३६८ में आक्रमण से शेष हुई और इन्द्र की अलकापुरी सदृश जिनालयों से मण्डित धनकुबेरों की हवेलियों से सुशोभित स्वर्णगिरि दुर्ग एकदम वीरान हो बेलियाँ और कलापूर्ण स्थापत्य मन्दिरादि ध्वस्त कर दिए अब केवल महावीर जिनालय, अष्टापद जिनालयादि बचे हैं । कुमरविहार नामशेष एक देहरी स्वरूप है । महावीर स्वामी का सौध - शिखरी जिनालय मूल गर्भगृह गूढ मण्डप सभा मण्डप शृंगार चौकी आदि से अलंकृत है । अत्रस्थ ४ - ५ ध्वस्त मन्दिरों की शिल्प समृद्धि तथा शिलालेखादि जालोर नगर में स्थित तोपखाना नामक इमारत में लगे हुए हैं जिनकी नकल इस पुस्तक दी गई है। जो जालोर खरतर गच्छ रूपी कमल का सरोवर कहा जाता था । अनेक महान् आचार्यो ने अनेक ग्रन्थों की रचना की, अनेक दीक्षाएं प्रतिष्ठाएं व समृद्ध धर्मकार्य हुए वह उपत्यका में बसा हुआ एक जिले का मुख्य नगर रह गया है । जब यह नगर जोधपुर के राज्याधिकार में आया तो महाराजा गजसिंह के मंत्री जयमल मुणोत ने जीर्णोद्धार कराके सं० १६८१ में श्री विजयदेवसूरि के आज्ञानुवर्ती श्री जयसागर गणि से प्रतिष्ठा करवाई । अष्टापदावतार चौमुख मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया गया और प्रवेश द्वार के सामने हाथी पर आरूढ़ मंत्री जयमल की प्रतिकृति है । यह द्वितल मन्दिर भी कलापूर्ण और दर्शनीय है ।

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