Book Title: Samyag Darshan Ki Vidhi
Author(s): Jayesh Mohanlal Sheth
Publisher: Shailendra Punamchand Shah

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Page 7
________________ ॐ श्रीमहावीराय नमः लेखक के हृदयोद्गार मुझमे छोटी उम्र से ही सत्य को खोजने की तड़प थी। उसके लिए सर्व दर्शन का अभ्यास किया और अन्त में जैन दर्शन के अभ्यास के पश्चात् १९९९ में ३८ वर्ष की उम्र में मुझे सत्य की प्राप्ति हुई, अर्थात् उसका अनुभव/साक्षात्कार हुआ। तत्पश्चात् जैन शास्त्रों का पुन:-पुनः स्वाध्याय करते हुए अनेक बार सत्य/शुद्धात्मा का अनुभव हुआ, जिसकी विधि इस पुस्तक में शास्त्रों के आधार सहित सभी आत्मार्थिओं के लाभार्थ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। प्रत्येक जैन सम्प्रदाय में सम्यग्दर्शन के सम्बन्ध में तो अनेक पुस्तकें हैं, जिनमें सम्यग्दर्शन के प्रकार, सम्यग्दर्शन के भेद, पाँच लब्धियाँ, सम्यग्दर्शन के पाँच लक्षण, सम्यग्दर्शन के आठ अंग, सम्यग्दर्शन के पच्चीस दोष-इत्यादि विषयों पर विस्तार से वर्णन है, परन्तु उन में सम्यग्दर्शन के विषय सम्बन्धी चर्चा बहुत ही कम देखने में आती है; इसलिये हमने उस पर प्रस्तुत पुस्तक में थोड़ा प्रकाश डालने का प्रयास किया है। __ हम किसी भी मत-पन्थ में नहीं हैं। हम मात्र आत्मा में हैं, अर्थात् मात्र आत्मधर्म में ही हैं; इसलिये यहाँ हमने किसी भी मत-पन्थ का मण्डन अथवा खण्डन न करके मात्र जो आत्मार्थ उपयोगी है, वही देने की कोशिश की है; इसलिये सब उसे इसी अपेक्षा से समझें-यह अनुरोध है। हमने इस पुस्तक में जो भी बतलाया है, वह शास्त्र के आधार से और अनुभव कर बतलाया है, तथापि किसी को हमारी बात कल्पना भर लगती हो, तो वे इस पुस्तक में बतलाये हुए विषय को किसी भी शास्त्र के साथ मिलान कर देखें अथवा स्वयं अनुभव करके प्रमाण करके देखें-इन दो के अतिरिक्त अन्य कोई परीक्षण की विधि नहीं है। कोई अपनी धारणा को अनुकूल न होने से हमें अन्यथा माने, तो उस में हमारा कुछ नुकसान नहीं है क्योंकि उस से हमारे आनन्द की मस्ती में कुछ भी हीनता आनेवाली नहीं है। आपको ऐसा लगता हो कि आपने जो धार रखा है, वही सच्चा है तो आपसे हम कहते हैं कि- आप अपनी धारणा अनुसार आत्मानुभूति कर लें तो बहुत अच्छा; और यदि आप अपनी धारणा अनुसार वर्षों तक प्रयत्न करने के बाद भी, भाव भासन (तत्त्व का निर्णय) तक भी नहीं पहुँचे हों और तत्त्व की चर्चा तथा वाद-विवाद ही करते रहे हों, तो आप, इस पुस्तक में दर्शाये हुए विषय पर अवश्य विचार करना। यदि आप विचार करेंगे तो तत्त्व का निर्णय तो अचूक होगा ही-ऐसा हमें विश्वास है; इसलिये इस पुस्तक में जो विषय बतलाया है, उस पर सबको विचार करने के लिये हमारा

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