Book Title: Pahuda Doha Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 18
________________ प्रस्तावना यह इतिहास-सिद्ध बात है कि मनुष्य हजारो वर्षों से शान्ति की खोज मे प्रयत्नशील रहा है। इसो के परिणामस्वरूप वह अध्यात्म के शिखर पर पहुचने मे सफल हुआ है। जैसे आयुर्विज्ञान ने विभिन्न शारीरिक व मानसिक रोगो के कारणो की खोज करके उनको दूर करने के उपाय किए है उसी प्रकार अध्यात्म ने मानवीय अशान्ति के कारणो को खोजकर उनसे बचने के लिए मनुष्य को प्रेरित किया है। जिस ससार मे मनुष्य रहता है वहाँ विभिन्न वस्तुओ और विभिन्न मनुष्यो से उसका सम्बन्ध आवश्यक होता है । जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नही जहाँ वह वस्तुप्रो के उपयोग और मनुष्यो के सहयोग के बिना चल सकता हो । उसकी तृप्ति इसी उपयोग और सहयोग से होती है । यह तृप्ति मनुष्य के जीवन का स्वीकारात्मक पक्ष है। किन्तु इस तृप्ति के पूर्व जहाँ मनुष्य को आकुलता-व्याकुलता रहती है वहा उसको इसके पश्चात उसमे अस्थायित्व का भान होता रहता है । यह प्रस्थायित्व बार-बार ताप्ति की आकाक्षा को जन्म देता है और इसी से वस्तु और व्यक्ति के प्रति आसक्ति का आविर्भाव होता है तथा मानसिक अशान्ति उत्पन्न होती है । इस तरह सामान्य मनुष्य विभिन्न प्रकार की आसक्तियो के घेरे मे ही जीता है । मुनि रामसिंह ने पाहुडदोहा मे ऐसे सूत्र दिए है जिससे व्यक्ति आसक्तियो के घेरे से बाहर निकल सके और स्थायी शान्ति की ओर अग्रसर हो सके । मनुष्य जव अपने इर्द-गिर्द की वस्तुयो को देखता है और जब वह मनुष्यो के सम्पर्क मे आता है तो एक बात स्पष्ट रूप से उसे समझ मे पाहुडदोहा के रचनाकार मुनि रामसिंह हैं । डॉ हीरालाल जैन के अनुसार मुनि रामसिंह राजस्थान के प्रतीत होते है। इनका समय 1000 ईस्वी माना गया है । पाहुडदोहा 'अपभ्रश' भापा मे रचित है। इसमे अपभ्रश के 222 दोहे है। इनमे से ही हमने 92 दोहो का चयन पाहुडदोहा चयनिका के अन्तर्गत किया है। मुनि रामसिंह ने अध्यात्मप्रधान शैली मे यह ग्रन्थ लिखा है। इसी का मक्षिप्त विवेचन हमने प्रस्तावना मे किया है। iv ] [ पाहुटदोहा चयनिका

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