Book Title: Pahuda Doha Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 37
________________ 38 जगत् को शोभा आत्मा को छोडकर जो (लोग) पर-वस्तु मे टिकते हैं, (वे ही) मिथ्यादृष्टि (असत्यप्टिवाले) (है)। (इसके) अतिरिक्त क्या मिथ्यादृष्टि के माथे पर सीग होते हैं ? 39 हे मूढ | जगत् की शोमा आत्मा को छोडकर (तू) अन्य को मत विचार । (सच है) जिसके द्वारा मरकत (मरिण) जान लिया गया है उसके लिए क्या कांच की गिनती (है)? हे जीव । यदि तू दुख से डरा हुआ (है), (तो) पर (वस्तु) का मनन मत कर । तिल-तुम जितना भी कांटा अवश्य वेदना उत्पन्न करता है। (यदि) व्यक्ति के द्वारा (प्रात्मा के गुण) समझे हुए हैं (तो) (वह) पाप को क्षणभर मे नष्ट कर देता है, (जैसे) सूर्य तुरन्त अन्धकारस्पी घर को अकेला नष्ट कर देता है । 42 हे योगी । जिसके मन मे जन्म-मरण से रहित एक ही परम देव निवास करता है, तव (ही) (वह) (व्यक्ति) परलोक (श्रेष्ठ जीवन) प्राप्त करता है। 43 जो पुराने किए हुए कर्मों को नष्ट करता है और नये (कर्मों) का प्रवेश नही होने देता और जो परम निर्दोप (व्यक्ति) को नमन करता है, वह परम आत्मा हो जाता है। (व्यक्ति) तभी तक कर्मों को उत्पन्न करता है और (उससे) आत्मा मे (तभी तक) दोष उत्पन्न होता है, जव तक (वह) निर्मल होकर उच्चतम और लेप (आसक्ति) से रहित (आत्मा) को नहीं जानता है । 45 लोम के कारण मूच्छित हुआ तू तभी तक विषयो के सुख को (अपना) मानता है, जब तक (तू) गुरु की कृपा से दृढ आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त नहीं करता है। पाहुडदोहा चयनिका ] [ 13

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