Book Title: Pahuda Doha Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 61
________________ जो अजरामरु वभु परु सो अप्पाण महि 22 देहहि 1 उत्भउ जरमरण वण्ण विचित देहहो रोया जारिण तुह लिंगड मित्त 23 कम्महं केर भावडउ जइ अप्पारण भरणेहि (ज) 1 / 1 सवि [(श्रजर) + (अमर)] [ ( अजर) वि - ( अमर ) 1 / I वि] ( बभ) 1 / 1 (पर) 1 / 1 वि (त) 1 / 1 सवि (अप्पा) 1/1 (मुरण) विधि 2 / 1 सक (देह) 1/7 (उन्मन ) 1/1 वि पाहुडदोहा चयनिका ] ( वण्ण) 1 / 2 (विचित्त) 1/2 वि (देह) 6/1 ( रोय) 1/2 (जाण) विधि 2 / 1 सक (तुम्ह) 1 / 1 स (लिंग) 1/2 ( मित्त) 8 / 1 ( अप्पारण) 2/1 (भरण) व 2 / 1 सक अव्यय = = जो === श्रजर-श्रमर [( जरा-जर) - (मरण) 1 / 1] = बुढापा और मृत्यु = श्राकृतियाँ = भिन्न-भिन्न === ब्रह्म ==परम == वह स्व-रूप समझ = देह मे ==दोनो = देह के = रोग (कम्म) 6/2 (केर ) 2 / 1 वि ( भाव + डन) 2 / 1 'ग्रडग्र' स्वा = भाव को अव्यय =यदि समझ =तू = लिंग = हे मित्र = = कर्मों (के) से ==सम्बन्धक परसर्ग श्रात्मा कहता है =तब 1 श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 146 1 2 परमर्ग - श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 161 1 [ 37

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