Book Title: Pahuda Doha Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 82
________________ 62 अज्जु देविणु जित्यु सिद्ध अव्यय -साथ (रिणम्मलझाए- [(रिणम्मल) वि-(झारण)-(ठिय) =निर्मल ध्यान मे व्हरा(ठियाह भूक 6/2 अनि] हुमा होने पर। अव्यय -प्राज जिरिगन्ज (जिण+इज्ज) व कर्म 3/1 सक =जीता जाता है (जीते जाते हैं) करहुलउ (करह+ उल+अ)1/1'उलअ'स्वा =ऊंट लइ (लग्र) सकृ =ग्रहण करके पई (तुम्ह) 3/1 स तेरे द्वारा (दा+एविणु) सक -स्वीकार करके लक्खु (लक्ख) 2/1 =लक्ष्य को अव्यय जहाँ चडेविणु (चड+एविणु) सक -आरूढ होकर परममुरिण [(परम)वि-(मुणि) 1/1] =परम-मुनि सम्व (सव्व) 111 वि =सभी गयागय (गयागय) 6/1 -गमनागमन से (मोक्ख) 2/1 =मुक्ति अप्पा (अप्प) 8/1 हे आत्मन् मिल्लिवि (मिल्ल+इवि) सकृ -छोडकर एक्कु (एक्क) 2/1 वि पर (पर) 2/1 वि पर को अण्ण (अण्ण) 1/1 वि -अन्य अव्यय =नहीं वरित (वइरिय) 1/I वि कोई (क) 1/1 सवि =कोई भी जेण (ज) 3/1 म =जिसके द्वारा मोक्खु शत्रु कभी-कभी सप्तमी के स्थान पर पप्ठी का प्रयोग पाया जाता है । (हे प्रा व्या 3-134)। 2 कमी-कभी पचमी के स्थान पर पष्ठी का प्रयोग किया जाता है (हे प्रा व्या 3-134)। 58 ] [ पाहुटदोहा चयनिका

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