Book Title: Pahuda Doha Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 81
________________ 1 मूलु 2 छडि जो डाल चडि कह तह जोयाभासि चीर ण वरणह जाइ चढ बिणु उट्टिय इ कपासि 61. सववियप्पह [ ( सव्व) वि - ( वियप्प) 6 / 2] (तुट्ट) भूकृ 6 / 2 अनि तुट्टह (मूल) 2/1 (छड + इ) सकृ (ज) 1 / 1 सवि ( डाल) 2/1 (ड) व 3 / 1 सक श्रव्यय कोलइ अप्पु परेल श्रव्यय [ ( जोय) + (आभास ) ] [ ( जोय) 1 / 1 (प्रभास) विधि 2 / 1 सक ] (चीर) 2/1 अव्यय (TTT) 4/2 (जा) व 3 / 1 सक (वढ) 8/1 वि अव्यय (उट्ट उट्टिय) भूकृ 2/1 अव्यय (कप्पास कपासी) 2/1 चेयरणभावगयाह' [(चेयरण) - (भाव) - (गय) भूकृ 6/2 अनि (कील) व 3 / 1 अक (अप्प ) 1/1 (पर) 3/1 पाहुडदोहा चयनिका ] = मूल को = छोडकर =जो =डाल पर = चढ़ता है = कहाँ = वहाँ = वस्त्र = नहीं = बुनने के लिए योग, कह = बुनता है। = हे मूर्ख == बिना = श्रोटे हुए = - निश्चय ही == कपास के सब विकल्पो के टूटा हुआ होने पर == आत्मा के स्वभाव मे पहुँचाना होनेपर क्रीडा करता है। व्यक्ति = दूसरे के = यहाँ वर्तमान काल अन्यपुरुष एकवचन का प्रत्यय 'इ' मूल शब्द मे मिला दिया गया है । नया प्रयोग है । कभी-कभी सप्तमी के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग पाया जाता है । (हे प्रा व्या 3-134) 1 57

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