Book Title: Pahuda Doha Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 96
________________ 88 मरिण अत्यि इहु सिद्धे भिक्ख भहि जिणवरु झाहि जीव तुह खोइ दुक्ख रण देवहि कहिमि वढ अजरामरु (तुम्ह) 1 / 1 स विसयकसायह? [ ( विसय) - ( कसाय) 6/2] (खो + इ) सकृ ( दुक्ख ) 2/1 पड होइ 89 इन्दियपसर शिवारियइ मरण जाहि ( मरण) 7/1 श्रव्यय (एएहुहु) 1 / 1 सवि (सिद्ध) 7/1 ( भिक्ख) 4/1 (भम) व 2 / 1 सक 72 J (जिरणवर) 2 / 1 (झाय) विधि 2 / 1 सक (जीव ) 8 / 1 अव्यय (ख) विधि 2 / 1 सक अव्यय (वढ ) 8 / 1 वि [(जर) + (अमर)] [ ( जर ) - ( अमर ) 1 / 1 वि] (पत्र) 1 / 1 (हो) व 3 / 1 प्रक =मन में =है ( मरण) 8/1 (जारण) विधि 2 / 1 मक =यह सिद्ध होने पर = भीख के लिए = घूमता है। = जिनेन्द्र का (को) = ध्यान कर = हे जीव =तू == विषय कषायो को = नष्ट करके = दुख = नहीं - - देखेगा (देख ) = कहीं भी हे मूर्ख ==श्रजर-श्रमर = पद = होता है [ ( इन्दिय ) - ( पमर) 1 / 1] ( रिणवार रिणवारिय) भूकृ 1/2 = रोके गये हैं = हे मन ==समझ = इन्द्रियो के प्रसार } श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 146 1 2 कभी-कभी द्वितीया के स्थान पर पष्ठी का प्रयोग पाया जाता है (है. प्रा व्या 3-134) I ( पाहा चयनिका

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