Book Title: Pahuda Doha Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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63
अप्पा मिल्लिवि एक्कु पर अण्णु ण वइरिउ कोइ। जेण विणिम्मिय कम्मडा जइ पर फेडइ सोइ।
64
जइ वारउं तो तहिं जि पर अप्पहं मणु ण घरेइ । विसयहं कारणि जीवड उ णरयहं दुक्ख सहेइ ॥
65
जीव म जारणहि अप्परणा विसया होसहिं म । फल किं पाहि जेम सिम दुक्ख करेसहिं तुझु ॥
66
विसया सेवहि जीव तुहु दुक्खह साहिक एण। तेरण णिरारिउ पज्जलइ हुववह जेम घिएण ॥
67.
जसु जीवंतहं मणु मुवउ पंचेंदियहं समाणु। सो जारिणज्जइ मोक्कलउ लद्धउ पहु णिवाणु ॥
68
कि किज्जइ बहु अक्खरहं जे कालि खउ जति । जेम अणक्खर संतु मुणि तव वढ मोक्खु कहति ॥
69
छहदंसरणीय
कारण
बहुल अवरुप्पर गज्जति । इक्कु पर विधरेरा जाति ॥
18 ]
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