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शिशुपालवधम्
हिन्दी अनुवाद - नवीन और विशाल ( काले-काले ) बादलों के नीचे वे नारद जी कर्पूर-चूर्ण के ढेर की तरह अत्यन्त श्वेत वर्ण के परिलक्षित हो रहे थे उस समय ( काले-काले बादलों के अधिक निकट होते समय ) - क्षण भर के लिए उनकी ( नारद जी की ) - शोभा ताण्डव नृत्य के अवसर पर हाथी के काले चर्म को ऊपर ओढे हुए एवं शरीर पर श्वेत भस्म लपेटे हुए शङ्कर के समान दृष्टिगोचर हो रही थी ॥ ४ ॥
विशेष- ब्रह्माण्डपुराण - २ ९ ६९, ३-२५-१४, ७२ १८४, मत्स्य - १८१-१४ और वायु - २१-५१, पुराणों के अनुसार भगवान् शङ्कर ने गजासुर का वध किया और उसकी प्रार्थना के अनुसार उसके शरीरचर्म को अपने इसीलिए भगवान् शङ्कर को 'कृत्तिवासस' कहा जाता है ।
ऊपर धारण किया
प्रसङ्ग - इस श्लोक में नारद की तुलना हिमालय से की गई है । कमलकेसर के समान पीत कान्तिवाली जटाओं को धारण करने वाले नारद जी यहाँ पीले वर्ण की लता समूहों को धारण करने वाले हिमालय के समान परिलक्षित होते हैं ।
दधानमम्भोरुहकेसरघुतीर्जटाः शरश्चन्द्रमरीचिरोचिषम् । विपाकपिङ्गास्तुहिनस्थलीरुहो धराधरेन्द्रं व्रततीततीरिव ॥ ५ ॥
दधानमिति । पुनः । अम्भोरुहकेसरद्युतीः पद्मकिञ्जल्कप्रभापिशङ्गीरित्यर्थः । जटादधानम्, स्वयं तु शरच्चन्द्रमरीचिरिव रोचियंस्य तम् । धवलमित्यर्थः । अत एव विपाकेन परिणामेन पिङ्गाः पिङ्गलाः तुहिनस्थल्यां तुषारभूमौ रोहन्तीति तुहिनस्थलीरुहः व्रततीततीलता व्यूहान् । 'वल्ली तु व्रततिलंता' इत्यमरः । दधानम् । धराधरेन्द्रो हिमवान् तुहिनस्थलीति लिङ्गान्नारदोपमानत्वाच्च तमिव स्थितम् ।। ५ ।।
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अन्वयः - अम्भोरुह केशरघुतीः जटाः दधानम् शरच्चन्द्रमरीचिरोचिषम् ( अतएव ) विपांकपिङ्गाः तुहिनस्थलीरुहः व्रततीततीः ( दधानं ) धराधरेन्द्रम् इव ॥ ५ ॥
हिन्दी अनुवाद - कमल के 'केशर की सी ( पीली ) कान्तिवाली जटाओं को धारण करते हुए, शरद् ऋतु के चन्द्रमा की किरणों की सी कान्तिवाले, ( शुभ्र नारद को ) तुषार भूमि में उत्पन्न, परिपाक से पीत वर्ण की लताओं के समूहों को धारण करने वाले हिमालय के समान ( इस व्यक्ति को श्रीकृष्ण ने नारद जाना ) ॥ ५ ॥
प्रसङ्ग - इस श्लोक में नारद मुनि का साम्य बलराम से प्रदर्शित किया
गया है ।