Book Title: Shishupal vadha Mahakavyam
Author(s): Gajanan Shastri Musalgavkar
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 122
________________ शिशुपालवधम् इति न्यायादारुण्यादिवत्प्रत्येकं प्रधानान्वथिनां मिथः सम्बन्धायोगादित्यल शाखाचङक्रमणेन । पुरा किल रावणः काम्ये कर्मणि पशुपतिप्रीणनाय नव शिरांस्यग्नो हुत्वा दशमारम्भे सन्तुष्टात्तस्मात्रैलोक्याधिपत्यं ववे इति पौराणिकी कथात्रानुसन्धेया ॥ ४६॥ ___ अन्वयः-भुवनत्रयस्य प्रभुः बभूपुः अतिरागात् दशमं शिरः चिकर्तिपुः इष्टसाहसः यः इच्छासदृशं पिनाकिनः प्रसादं विघ्नम् इव अतर्कयत् ॥ ४९ ।। हिन्दी अनुवाद-त्रैलोक्य का स्वामी होने की इच्छा करनेवाले, ( भगवान् शंकर के प्रति ) अत्यधिक भक्ति होने के कारण अपने दसवें मस्तक को काटने का इच्छुक तथा साहस-प्रिय जिसने ( रावण ने ) शंकर के भभीष्ट वरदान को विघ्न की तरह समझा ॥ ४९ ।। प्रसन--प्रस्तुत श्लोक में कविमाघ रावण द्वारा कैलासपर्वत के उठाने की घटना का वर्णन करते हैं। समुत्क्षिपन् यः पृथिवीभृतां वरं वरप्रदानस्य चकार शूलिनः ॥ प्रसत्तुषाराद्रिसुताससम्भ्रमस्वयङ्ग्रहालेपसुखेन निष्क्रयम् ॥ ५० ॥ अथ कैलासोत्क्षेपणवृत्तान्तमाह__ समुत्क्षिपन्निति ॥ यो रावणः पृथिवीभृतां पर्वतानां वरं श्रेष्ठं कलासं समु. क्षिपन् । दादिति शेषः । शूलिनो वरप्रदानस्य पूर्वोक्तस्य । असन्त्याः शं नचलनेन विभ्यत्यास्तुपाराद्विसुतायाः पार्वत्याः ससम्भ्रमो यः स्वयङग्रहः प्रियप्रार्थनां विना कण्ठग्रहणम् । 'सुप्सुपा-' इति समासः। तेन आश्लेपः सम्मेलनं तेन यत्सुखं तेन । लोक्याधिपत्यसुखादुत्कृष्टेनेति भावः। निष्क्रय प्रत्युपकारनिर्गतिं चकार । 'निष्क्रयो बद्धियोगे स्यात्सामर्थ्य निर्गतावपि' इति वैजयन्ती। यद्वा निष्क्रयं चकार क्रयेण व्यवहारेण याच्यादोपदैन्यं ममार्जेत्यर्थः। अत्र सुखवरदानयोविनिमयात्परिवृत्तिरलङ्कारः ॥५॥ अन्वयः--यः पृथ्वीभृतां वरं समुरिक्षपन् शूलिनः वरप्रदानस्य सत्तुपारादिसुताससम्भ्रमस्वयं ग्रहाश्लेपसुखेन निष्कयं चकार ॥ ५० ॥ हिन्दी अनुवाद-जिस ( रावग) ने पर्वतों में श्रेष्ठ (कैलास) को उपर उठाते हुए, शङ्कर के द्वारा दिये गये वरदान का, (पर्वत के हिलने डुलने से ) डरतो हई पार्वती के, घबराहट के साथ स्वयं किये हुए आलिङ्गनजन्य सुख के द्वारा (मानो) बदला चुका दिया ॥ ५० ॥ (रावण द्वारा कैलास पर्वत के ऊपर उठाए जाने पर उसके कंपन से भयभीत होकर पार्वती ने शंकर भगवान् का स्वयमेव ही आलिङ्गन कर लिया, शिवजी को

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