Book Title: Shishupal vadha Mahakavyam
Author(s): Gajanan Shastri Musalgavkar
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 165
________________ द्वितीयः सर्गः तूष्णीमवस्थानमासनम् । दुर्बलप्रबलयोर्वाचिकमात्मसमर्पणं द्वधी भावः । अरिणा पीडयमानस्य बलवदाश्रयगं संभ्रयः। कोशदण्डोत्थं तेजःप्रभावः । कर्तव्यार्थेषु स्येयान्प्रयत्न उत्साहः । षड्गुण चिन्तनं मन्त्रः । गतमन्यदिति सङ्क्षपः ॥२७॥ प्रसङ्ग-बलराम जी कहते हैं कि केवल शास्त्र का ज्ञान रखना एक बात है, और कार्य कुशलता रखना दूसरी बात है, वह सभी में नहीं होती। अन्धय-दुर्मेधसः अपि ग्रन्थान् अधीस्य गुणाः षट्, शक्तयः तिस्रः सिद्धयः च उदयाः यः, इति व्याकर्तुं अलम् ॥ २७ ॥ हिन्दी अनुवाद-मन्द बुद्धिजन भी (शुक्रनीति आदि) ग्रन्थों का अध्ययन कर छः गुण, तीन शक्तियां, तीन सिद्धियाँ तथा तीन उदय आदि इनकी व्याख्या करने में समर्थ होता है ॥ २७ ॥ इस श्लोक में कवि ने राजनीति के पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग किया है। विशेष-संधि, विग्रह, यान, आसन, संश्रय और द्वैधीभाव -ये छः गुण हैं। प्रभुशक्ति, मंत्रशक्ति और उत्साहशक्ति-ये तीन सिद्धियाँ हैं। वृद्धि, क्षय, और स्थान-ये तीन उदय हैं ॥२७॥ प्रसङ्ग-प्रस्तुत श्लोक में बलराम जी पुनः उद्धवजी के मत को स्वीकार न करने के लिए संकेत करते हैं। ननु शास्त्रोक्तार्थव्याख्यातव शास्त्रज्ञः, स एव ग्राह्यवचनश्चेत्याशङ्कयाह-- अनिर्लोडित'-कार्यस्य वाग्जालं वाग्ग्मिनो वृथा ॥ निमित्तादपराद्धेषोर्धानुष्कस्येव वलिगतम् ॥ २८॥ अनिलोडितेति ॥ अनिलोडितं नालोकितं कार्य येन तस्य । कार्याकार्यमजानत इत्यर्थः । वाचोऽस्य सन्तीति वाग्मी वावदूकः। 'वाचोयुक्तिपटुर्वाग्मी वावदूकोऽतिवक्तरि' इत्यमरः । 'वाचो ग्मिनिः' (५।२।१२४) इति ग्मिनिप्रत्ययः। तस्य वाग्जालं वागाडम्बरो निमित्ताल्लक्ष्यात् । 'वेध्यं लक्ष्य निमित्तं च शख्यं च समं विदुः' इति वैजयन्ती । अपराद्धेषोः स्खलितबाणस्य । धनुः प्रहरणमस्येति धानुष्को धन्वी । 'प्रहरणम्' (४।४१५७) इति ठक् । इसुसुक्तान्तात्कः (७३५१)। 'अपराद्धपृषत्कोऽसो लक्ष्याधश्च्युतसायकः । धन्वी धनुष्मान्धानुष्कः १. अनिर्लोठित ।

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