Book Title: Shishupal vadha Mahakavyam
Author(s): Gajanan Shastri Musalgavkar
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 159
________________ द्वितीयः सर्गः माल्याद्यैरधिवासनमुच्यते । मदिरया कृतानुव्याधं कृतसंसर्गम् । प्रियागण्डूषगन्धिमित्यर्थः । 'व्यधनपोरनुपसर्ग - ( ३|१|६१ ) इत्यनुपसृष्टादप्प्रत्यय विधानादुपसृष्टादृव्यधेर्घञ्प्रत्ययः । मुखामोदं स्वमुखगन्ध विशेषम् । 'आमोदः सोऽतिनिर्हारी' इत्यमरः । उद्वमन्नुद्विरन् । अत्र मदिराराममुखगन्धयोः स्वगन्धतिरोधानेन रामामुखतद्गण्डूषमद्यगन्ध स्वीकारात्तद्गुणयोस्तत्रोत्तरस्यात्म विशेषकत्वेन पूर्णसापेक्षत्वादङ्गाङ्गिभावेन सङ्करः । ' तद्गुणः स्वगुणत्यागादन्योत्कृष्ट गुण हृतिः' इति लक्षणात् ॥ २० ॥ अन्वयः - ककुद्मिकन्यावक्त्रान्तर्वासन्धाधिवासया, मदिरया कृतानुष्याधं मुखामोदं उद्यमन् (रामः जगाद ) ॥ २० ॥ हिन्दी अनुवाद - रेवती के मुख में स्थित रहने से अत्यन्त सुवासित मदिरा से मिले हुए सुवास को बोलने के समय बाहर फैलाते हुए, ( बलराम ७७ बोले ) ॥ २० ॥ । विशेष - नायिका भेद की दृष्टि से 'रेवती' पद्मिनी नायिका है। ऐसी नायिका का निःश्वास सुगन्धित होना स्वाभाविक है किया, वह मदिरा भी उसके मुख-संसर्ग से उच्छिष्ट मदिरा का बलराम जी ने पान करने के सित हो गया था । पद्मिनीनायिका होने मुख- श्री एवं उनके निःश्वास को ११४३, ३।५६ ) ॥ रेवती ने जिस मदिरा का पान सुगन्धित हो गई थी, और उसकी कारण उनका निःश्वास भी सुवा-कारण पार्वती तथा शकुन्तला की पद्म का सौरभ प्राप्त था । ( कुमारसम्भव प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक में बलरामजी के मुख- सौरभ का वर्णन किया गया है । जगाद वदनच्छद्मपद्मपर्यन्तपातिनः ॥ नयन्मधुलिहः श्वैत्यमुदंशु' दशनांशुभिः ॥ २१ ॥ ( कुलकम् ) जगादेति ॥ वदनमेव छद्म कपटं यस्य तत्पद्मम् । वदनमेव पद्ममित्यर्थः । छद्मशब्देनासत्यत्वप्रतिपादनरूपोऽपह्नवः । तस्य पर्यन्तपातिनः प्रान्तसञ्चारिणः मधु लिहन्तीति मधुलिहस्तान्मधुपान् । क्विप् । उदग्रेरुच्छ्रितैः दशनांशुभिः श्वत्यं धावल्यं नयन्नेवं जगाद । तद्गुणालङ्कारः । तस्य मधुपसन्निधापकवदनापह्नवसापेक्षत्वात्तेन सङ्करः । कुलकम् ॥ २१ ॥ अन्वय :- वदनच्छद्मपद्मपर्यन्तपातिनः मधुलिहः उदंशुदशनांशुभिः श्वैश्यं नयन् ( रामः जगाद ) ॥ २१ ॥ १. ० मुद्रय : "

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