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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ।। पान ७६ ॥
लेझ्याके अनुवादकरि कृष्ण-नील-कापोतलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि आदि असंयतसम्यग्दृष्टिलाई गुणस्थानवत् संख्या है । पीतपद्मलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि आदि संयतासंयतताई स्त्रीवेदवत् है । प्रमत्त अप्रमत्त संयत संख्यात हैं । शुक्ललेश्यावाले मिथ्यादृष्टि आदि संयतासंयतताई पल्योपमके असंख्यातवै भाग हैं । प्रमत्त अप्रमत्त संयत संख्यात हैं । अपूर्वकरण आदि सयोगकेवलीताई गुणस्थानवत् संख्या है । अलेश्यावाला गुणस्थानवत् संख्या है ।।
_ भव्यके अनुवादकरि भव्यवि मिथ्यादृष्टि आदि अयोगकेवलीपर्यंत गुणस्थानवत् संख्या है। अभव्य अनंत हैं !!
___ सम्यक्त्वके अनुवादकरि क्षायिकसम्यक्त्वविर्षे असंयतसम्यग्दृष्टि पल्यकै असंख्यातवै भाग हैं । संयतासंयत आदि उपशांतकषायपर्यंत मनुष्य संख्यात हैं । च्यारि क्षपक श्रेणीवाला सयोगकेवली अयोगकेवली गुणस्थानवत् है । क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टिविर्षे असंयतसम्यग्दृष्टि आदि अप्रमत्तताई गुणस्थानवत् । औपशमिकसम्यक्त्वविर्षे असंयतसम्यग्दृष्टि असंयतासंयत पल्योपमके संख्यातवै भाग हैं : प्रमत्ताप्रमत्त संयत संख्यात हैं । च्यारि औपशमिक गुणस्थानवत् संख्या है । सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यमिथ्यादृष्टि मिथ्यादृष्टि गुणस्थानवत् संख्या है ।।
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