Book Title: Sarvarthsiddhi Vachanika
Author(s): Jaychand Pandit
Publisher: Kallappa Bharmappa Nitve

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Page 813
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिषचनिका पंडित जयचंदजीकृता । दशम अध्याय ॥ पान ७९५ ॥ ASOPORANPOXOPANARROROPRICORIApapa ऐसें इस तत्वार्थशास्त्रका दशम अध्यायकी वचनिका पूर्ण भई ॥ आगें तत्वार्थसूत्रका दश अध्यायका जोडरूप संक्षेप अर्थ लिखिये हैं । _ तहां प्रथम अध्यायमें प्रथमसूत्रमें तौ सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र तीनकी एकता है । सो मोक्षमार्ग है ऐसा कह्या। आगें दूसरे सूत्र में सम्यग्दर्शनका लक्षण कह्या। तीसरे सूत्रमें सम्यग्दर्शनकी उत्पत्ति दोयप्रकार कही। चौथे सूत्र में सम्यग्दर्शनके विषयभूत सात तत्व कहे । बहुरि इनके स्थापनकू व्यवहारका व्यभिचार मेंटनेकू नाम आदि च्यारि निक्षेप कहे। आगे प्रमाणनयनिकरि सम्यग्दर्शनादिक तथा तिनका विषय जीवादिक तत्वनिका अधिगम होय है। बहुरि निर्देशादि छह अर सत् आदि आठ ऐसैं चौदह अनुयोगानकार अधिगम होय है, ऐसे कया। बहुरि मति आदि पांच ज्ञानके भेद कहि अर तिनके दोय प्रकार प्रमाण कहे । परोक्ष दोय प्रत्यक्ष तीनि । बहुरि मतिज्ञानके उत्पत्ति के कारण कहि । ताके अवग्रहादिक भेद च्यारि सूत्रमें कहे । ते तीनसै छत्तीस होय हैं। बहुरि श्रुतज्ञानका स्वरूप भेद कहे । बहुरि अवधिज्ञानका स्वरूप दोय सूत्रमें कह्या । बहुरि मनःपर्ययका स्वरूप कह्या ! ताके दोय भेदनिका विशेष कहि अवधिमनःपर्ययमें विशेष कह्या। आगें पांचू ज्ञानका विषय तीनि सूत्रमें कहि । अर एकजीवके एककाल च्यारिताई ज्ञान होय है ऐसे कया । बहुरि मति श्रुत अवधि विपर्ययस्वरूपभी होय है, ताका कारण कह्या । बहुरि नैगम आदि सात नयकी संज्ञा कहि । प्रथम अध्याय पूर्ण कीया ॥१॥ आगें दसरा अध्यायमें जीवतत्वका निरूपण है। तहां प्रथमही जीवके औपशमिक आदि पांच भाव हैं। तिनके तरेपन भेद सात सूत्रमें कहे। आगे जीवका प्रसिद्ध ऐखि उपयोगकू लक्षण कह्या । ताके आठ भेद कहे। आगे जीवके भेद कहे। तहां संसारी अर मुक्त अर 7 पावने.. "संझी असंज्ञी त्रस स्थावर त्रसके भेद द्वीन्द्रियादिक पंचइन्द्रि ANDrawasakapusakssexcakaasis For Private and Personal Use Only

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