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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३३१ ॥ तपऋध्दि, बलऋध्दि, औषधऋध्दि, रसऋध्दि, अक्षीणऋध्दि ऐसे । तहां अनृध्दिप्राप्तमें काशी कोशलादि आर्यदेशनिविषै उपजे ते क्षेत्र आर्य हैं । बहुरि इक्ष्वाकु जाति भोजकुलादिविषै उपजे जाति हैं | बहुरि कर्म आर्य तीन प्रकार हैं । तहां सावद्यकर्म आर्य, अल्पसावद्यकर्म आर्य, असावद्यकर्म आर्य । तहां सावद्यकर्म आर्य छह प्रकार हैं ॥ तहां असि धनुष्य आदि शस्त्र के प्रयोगकेवि प्रवीण होय, ते असिकर्म आर्य हैं । बहुरि द्रव्य आदिका आयव्यय लिखने विषै प्रवीण होय ते मषिकर्म आर्य हैं । बहुरि हल कुलि दांतला आदि शेती के उपकरण के विधान जा
कृषिकर्म आर्य हैं । बहुरि चित्राम गणित आदि वहतरि कला जाने ते विद्याकर्म आर्य हैं । बहुरि धोबी नाई लुहार कुमार सुनार आदि शिल्पकर्म आर्य हैं । बहुरि चंदनादि सुगंध, घृतादि रस, शाल्यादि धान्य, कार्पासादि वस्त्र, मोती आदि जवाहर अनेकप्रकार द्रव्यका संग्रह करने वाले अनेक प्रकार वाणिज्यकर्म आर्य हैं । बहुरि अल्पसावद्यकर्म आर्य देशविरत श्रावक है । बहुरि असावद्यकर्म आर्य सकलविरत मुनि है || बहुरि चारित्र आर्य दोय प्रकार हैं । तहां चारित्रमोहके उपशमतैं तथा क्षयतें बाह्यके उपदेशविनाही अपनी शुध्दतातें चारित्रपरिणामकुं प्राप्त भये ते अभिगतचारित्र आर्य हैं । बहुरि चारित्रमोहके क्षयोपशम होतैं बाह्यके उपदेशतें चारित्रपरिणाम
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