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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय पान ॥ ९७ ॥
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उत्सर्पिणी अवसर्पिणी परिमाण है । अंगुलिक प्रदेश अर इनिके समय समान हैं । अवशेषनिका गुणस्थानवत् काल है। अनाहारकवि मिथ्यादृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीवकी
अपेक्षा जघन्य तो एकसमय है । उत्कृष्ट तीन समय है । सासादनसम्यग्दृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टिका | नानाजीवकी अपेक्षा जघन्य एकसमय है । उत्कृष्ट आवलीकै असंख्यातवां भाग है। एकजीव अपेक्षा
जघन्य तौ एकसमय है उत्कृष्ट दोय समय है। सयोगकेवलीका नानाजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ तीन समय है । उत्कृष्ट असंख्यातसमय है । एकजीव अपेक्षा जघन्य अर उत्कृष्ट तीन समय है । अयोगकेवलीका गुणस्थानवत् काल है । ऐसें कालका वर्णन कीया है ॥
आगें अंतरका निरूपण करिये हैं । तहां विवक्षित गुणकै अन्यगुण पलट न होते फिर तिसही गुणकी प्राप्तितें पहलै वीचिका काल सो अंतर है । सो दोय प्रकार कहिये है । सामान्यकरि तौ गुणस्थानविर्षे, विशेषकरि मार्गणाविर्षे । तहां सामान्यकरि मिथ्यादृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा अंतर नाही है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट एकसोबत्तीस सागर देशोन कहिये किछु घाटि है । सासादनसम्यग्दृष्टिका अंतर नानाजीवकी अपेक्षा जघन्य तो एक समय, उत्कृष्ट पल्यका असंख्यातवा भाग है । एकजीव अपेक्षा जघन्य तौ पल्यका असंख्यातवा भाग,
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