________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ।। पान ४६४ ॥ दोय गुण रूक्षपरमाणुनिकरि बंध नाहीं है। बहुरि तीनि गुण रूक्षपरमाणुनिकें तीनि गुण रूक्षपरमाणुनिकरि बंध नाहीं है । इत्यादि समानगुण होय तथा सदृशभी होय तिनकें बंध नाही होय है । इहां सदृशका ग्रहण है, सो गुणकी विषमता होता बंध होय है ऐसें जनावनेके अर्थ है ।। __आगें ऐसे कहनेतें विषमगुण परमाणुनिकै तुल्यजातीयकै तथा अतुल्यजातीयकै नियमरहित बंधका प्रसंग होते जिनकै नियम है-तिनके जनावने... सूत्र कहै हैं
॥यधिकादिगुणानां तु ॥ ३६ ॥ __याका अर्थ- दोय अधिक गुणके परमाणुनिकही बंध होय है । दोय गुण जामें अधिक होय सो द्यधिकगुण कहिये । सो कौन दोय गुण ? परमाणुते दोयगुण अधिक परमाणु जामें च्यारि गुण है सो है। बहुरि इहां आदिशब्दकरि तीनिगुण प दोय अधिक गुण है । इत्यादिक दोयगुण अधिक समानजातीय तथा असमानजातीय परमाणुनिकै बंध होय है, अन्यकै नाही होय है। सोही कहिये है, दोयगुण सचिक्कणका. जामें
होय ऐसै परमाणुका एकगुण स्निग्धकार तथा दोयगुण स्निग्धकरि तथा तीनिगुण स्निग्धकरि o बंध नाहीं है । जामें च्यारि गुणं स्निग्धका होय ताकरि बंध होय है । बहुरि तिसही दोय गुण
For Private and Personal Use Only