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॥ सर्वायसिदिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४७८ ॥
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॥छप्पय॥ अस्तिकाय हैं पंच कालयुत कथन दरख पद, तिनके गुण परजाय भेद लक्षण वहु परगट ॥ परमत स्वमत विभाग हेतु भाषे श्रुतधरमुनि, वार्तिक वृत्ति वखान विविधि कीनूं शिष्यनि सुनि ॥ लखि लेश देशभाषामयी करी वनिका सुनि धुनी, जानूं सरधा सांची करौ धरि चारित शिव ल्यो गुनी ॥१॥
ऐसे तत्वार्थनिका है अधिगम जाकर ऐसा जो मोक्षशास्त्र, ताविर्षे
पांचवां अध्याय समाप्त भया ॥५॥
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