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जिनहर्य ग्रन्थावली
लागी रहस्यु पाउले, हुँ तउ आलस अलगउ छोडिरे ।१सा) प्रभु मुप चंद निहालित्यु, मुझ नयण चकोर पसारि रे। नृत्य करिसि आगले रही, प्रभुना गुण हीयडइ धारि रे ।२सा वइसी प्रभुजीनइ आगलई, सांभलिस्यु सरस वपाण रे । सीस ऊपरि हुँ रापिस्यु, जगनायक ताहरी आण रे ॥सा३॥ प्रभुजी नउ गायर गाइसु, प्रभुजी नउ वचन प्रमाण रे । प्रभुजीना चरण पपालिस्यु, सुध पाणी सूजतउ आंणिरे ।४।
आगलि भावन माविस्यु, उपजाविसि प्रीति अपार रे । सफल मनोरथ थाइस्यइ, ते दिन धन २ अवतार रे ॥सा.॥ दक्षण भरतई हुं रहुं, तुमे रहउ महाविदेह मझारि रे । ईहां थकी मुझ वंदना, जिनहरप सदा अवधारि रे ॥सा०६।।
वीरसेन-जिनं-स्तवन ढाल-सोनलारे केरडीरे,वावि, रूपलाना पगथालीयारे । ए देशी सहीरो रे चतुर सुजाण, आवउ वीरसेन वांदिवारे । कीजइ रे धन अवतार, पातक कसमल छांडिवा रे ॥१॥ श्रापणउ रे साहिब एह, मेल्हीजइ नही वेगलउ रे । निसि दिन रे एहनइ पासि,रहीयइ प्रेमई आगलउ रे ॥२॥ मनना रे मेटइ दाग, केवल ज्ञान दिवाकर रे । तजीयइ रे अंतर मइल, रहीयइ साहिब स्यु सरु रे ॥३॥