Book Title: Jinaharsh Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
View full book text
________________
अथ मेघकुमार से चोढालीयो
1
हस्ती कुंभस्थल वैसी की, नृप सिर छत्र धरतौ जी । गिर - वैभार तलै क्रीड़ा करें, तो पूगै मन खंतो जी | ६ श्री० अभयकुमारें रे - डोहला पूरन्यो, सुर सांनिध तिण बारो जी । दस मसवाडे रे पुत्र जनम थयौ, नामें मेघकुमारो जी | ७श्री०सस्त्रकला सहु सास्त्र कला भण्यौ, योवन पुहुतो जामो जी । आठ कन्या परणावी सुंदरी, सुख विलसै अभिरामो जी । ८श्री० तिण अवसर श्रीवीर समोसर्या, श्रेणिक वंदण जायो जी । मेघकुमर पिण चंदै भाव सुं, धरम सुण्यौ चितलायो जी | श्री०. कुमर सुणी प्रतिबूझ्यो देसना, व्रत लेस्युं तुम्ह तीरो जी । जहा सुहं प्रतिबंधि न कीजीये, इम कहै श्रीमहावीरो जी । १० श्री०
।
५०६
ढाल २
घरि आईने रे माइड़ी ने कहै जी, मैं प्रणम्या महावीर । देसना सुणी रे हिव व्रत आदरूं रे, अनुमत द्यौ मोरी मात धारणी कहै रे मेघकुमार नै रे ।
तुं सुकमाल कली सारखौ रे, कोमल कदली नौ गात ॥ १धा० ॥ नयणे ऑसू छुटै चौसरा रे, जिम पांणी परनाल । ' हीयड़ौ फाटै रे दुख मा नहीं रे, भुय लोटे असराल ॥ २धा०/ मुखड़ौ दीठै रे . हींगडा उलसे रे, विण दीठां वैराग | तुझ नै राखुं रे हीयड़ा उपरै रे, जिम वॉभण गल नाग | ३धा० रमणी खमणी नमणी ताहरी रे, आठं ही सिरदार । कौन लोपै वाल्हा ताहरौ रे, तुझ विण कवण आधार ॥ ४धा

Page Navigation
1 ... 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607