Book Title: Jinaharsh Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 605
________________ [ ५३५ सीत सजोर लगै तनु अंतर कौन सं वात कहुँ विरहा की, वियोग महोदधि मोहि तरावत सेंण ई अरु दास हुँ ताकी । मैन के जोर शरीर भयौ कृश काय रही तनु माहि न वाकी, पोप के मास में कंत मिलावै जमा बलि जाऊ अहो निस वाकी ।।६।। माह के मास में नाह मनावी सहेली री बीनति जाइ करो, तुम्हें काहे रीसावत प्राण धणी अवला पर काहे कुरोस धरौ, निज आठ भवातर प्यारी सु प्रेम की प्यारी जमा नेमि आइ वरौ। तिय राजुल कुंवरि विलाप करै मोहि अंगन आइ के दुख हरौ ।।७।। फागुण मास मे खेलत होरी सहेली सभै कछ मो न सुहावै, न्हाइ सिंगार बनाऊं नहीं तनु सौंधौ लगावत मोहि न आवै। प्यारी घरे नहीं नाह नगीनौ वसत जसा मन मेरे न भावं, राजुल राजकुमारी कहै कुन ऐसी त्रिया पीउ कुं विरमावै ।। ८ ॥ आतप जोर तपं तनु कोमल क्यु तुझ कंत कहै गरमाई, और त्रिया मन मांहि वसी काइ नाह कुआली री हुँ न सुहाई । श्याम-विना टुक ही न सुहावत मो वाकै सरीर मे चिंतन काई, दास जसा उग्रसेन किसोरी कुचैत महीनो महा दुखदाई ।। ।। मंदिर मोहन आवत काहे के जो मे वाट खरी पीउ तेरी, दाघ वियोग लग्यो तनु भीतर क्यों न वुझावत मैं तेरी चेरी। मास वैसाख मे नेम मिलावत ताहि वधाई में देत घनेरी, राजुल आज कहै जसराज करो प्रिउ प्रीति अबें अधिकेरी ॥१०॥ जेठ मे मीतल नाह करौं तनु आइ मिलौ मेरे प्राण पीयारे, तो विनु चैन न पावु इकेली मैं तें कछु कामण कत कीया रे ।

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