Book Title: Jinaharsh Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 580
________________ ५१० जिनहर्ष ग्रंथावली ए चित्रसाली रे मंदिर मालीया रे, सखर सुंयाली सेज | भोग पुरंदर ए सुख भोगवौ रे, अबला धरौ हेज ६धा० सुख ने काजै रे जे तप कीजीय रे, ते सुख पाम्या एह । तूं छोड़े छै आस्या आगली रे, स्यं जाणे छ तेह ।७धा० जीभड़ी माहरी ए जुगती नही रे, जिण कहीये तुं जाय । तुझने कोइ रे अनुमत न आपल्ये रे, देई म जाय सदाह धा० कुमर कहै रे सुण मोरी मातजी रे, कूड़ा म कर विलाप । जातां मरतां कण राखी सके रे, जौवौ विचारी आप धा० मा समझावी ने व्रत आदस्यौ रे, पहिला दिवस मझार । त्रण संथारे सूतौ छेहड़ौ रे, बहु मुनिवर संचार १०धा० ढीचण पगना रे संघट दुहवै रे, नावें नींद लिगार । निरमायल कर मुझने परहर्यो रे, कोइ न लै मारी सार ।११धा० __ढाल ३ इम करतां दिन ऊगम्यौ रे हां, आयौ जिनवर पास । रिपजी सांभलौ, मीठी वाणी वीरनी रे हां, बोलावै सुविलास रि०१॥ तुम्हे गुरवा गंभीर, साहसवंत सधीर। काय दीसौ दिलगीर, इम कहै श्री महावीर ॥ रि०२ ॥ इहां थकी तीजै भवै रे हां, गिर वैताढ्य समीप ।रि०। सुमेरप्रभु हाथी हुतो रे हां, पटदंतु गज जीप ॥ रि०३ ॥ सहस हाथणी परवर्यो रे हां, आयौ ग्रीपम काल ।रि०। दावानल में दाझतौ रे हां, पुहतौ सर ततकाल ॥रि०४॥

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