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कुगुरु पचीसी
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चाकर नफर न राखइ पासड़, न करावड़ कोई काज जी । न्हावण धोरण वेस वणावण, न करे देह इलाज जी ||२०|| व्याज वटाव करे नही कईयां, न करे विणज व्यापार जी । धरम हाट मांडी नइ वठा, विणजे पर उपगार जी ॥ २१ ॥ सुगुरु तिर अवरांना तारइ, सायर जेम जिहाज जी । काठ प्रसंग लोह तिरइ तिम, गुरु संगति ए पाज जी ||२२|| सुगुरु प्रकाशक लोयण सरिखा, ज्ञान तथा दातार जी । सुगुरु दीपक घट अंतर केरा, दूरि गमइ अंधार जी ||२३|| सुगुरु अमृत सारीखा सीला, दीये अमरपुर वास जी ।
गुरु तणी सेवा निति करतां, करम विछूटड़ पास जी ॥ २४ ॥ सुगुरु पचीसी श्रवणे सुणि ने, करिज्यो सुगुरु प्रसंग जी । कहे जिनहरख सुगुरु सुपसाये, शांति हरख उछरंग जी ॥ २५ ॥
कुगुरु पचीसी
ढाल ॥चउपईनी॥
श्री जिन वाणी हीयडे धरे, कुगुरु तणी संगति परिहरे । लोह सीलाना साथी जेह, कुगुरु तणा लक्षण छह एह || १ || कोलउ साप कुगुरु थी भलउ, एको वार करे मामलउ । कुगुरु भवोभव दुख अछेह, कुगुरु तणा लक्षण छह एह || २ || पृथ्वि नीर अग्नि ने वाय, वनस्पति छठी त्रसकीय | एह तणी रक्षा न करेह, कुगुरु तणा लक्षण छड़ एह ॥ ३॥ थानक पाप तथा अठार, तेतर सेवे वारंवार ।
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