Book Title: Jinaharsh Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 570
________________ जिनहर्ष ग्रन्थावली अगनिकुंड पासे रही, प्रघलै घृत नो कुंभ हो । नारी संगति पुरुष नो, रहे किसी परि वंभ हो ।। २० ॥ सींह गुफा वासी जती, रह्यो कोस्या चित्रसाल हो । तुरत पड्यो वश तेहनै, देश गयो नेपाल हो ॥ २१ ॥ विकल अकल विण बापड़ा, पंखी करता केलि हो । देखी लखणा महासती, रुली घणु इण मेल हो ॥ २२ ॥ चित चंचल पंडग नर, वरते तीजे वेद हो। घजरा गति रति तेहनी, कहें जिनहर्ष उमेद हो ।। २१ ।। दूहा अथवा नारी एकली, भली न मंगति तास । धर्मकथा नहीं कहवी, वैसी तेहने पास ॥ २४ ॥ तेहथी अवगुण हुवै घणा, संका पामे लोक । आवे अछतो आल सिर, बीजी वाडि विलोक ॥ २५ ॥ - ____ ढाल ॥ कपूर हुवे अति ऊजलो रे ॥ जात रूप कुल वेशनी रे, रमणी कथा कहे जेह । तेहनो ब्रह्मवत किम रहे रे, किम रहे व्रत सं नेह रे । प्राणी नारी कथा निवारि ॥ २६ ॥ तूं तो बीजी बाड़ संभार रे, प्राणी नारी कथा निवारि ।। चंद्रमुखी मृगलोयणी रे, वेणि जांणि भुयंग। दीपशिखा सम नासिका रे, अधर प्रचाली रंग रे ॥२७॥ वाणी कोयल जेहवी रे, वारण कंभ उरोज ।

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