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अथ मेवकुमार रो चोढालीयो ५११ जल थोडौ कादम घणौ रे हां, पैठो पीवा नीर ।रि०। कीच वीच खूची रह्यौ रे हां, पामी न सके तीर ॥रि०५॥ पूरव वयरी हाथीयौ रे हां, देखी दीध प्रहार ।रि०। पीड्यौ पद दंतूसले रे हां, सही त्रिस भृख अपार ॥रि०६॥ सात दिवस वेदन सही रे हां, आयौ वरस सतावीस ।रि०॥ आर्त ध्यान मरी करो रे हां, विंध्याचल गज ईस ॥रि०७॥ रातै वरण सोहामणो रे हां, मेरुप्रमु चौदंत ।रि०। हथणी जेहनें सातसै रे हां, खल करै अत्यंत ॥रि०८॥ वनदव देखी एकदा रे हां, जातीस्मरण उपन्न ।रि०. दव ऊगरखा कारण रे हां, ध्यान धर्यो गज मन्न ॥ रि०॥ करै योजन नौ मांडलौ रे हां, नदी गंगाने तीर ।रि०।
...........॥रि०१०॥ सुयर 'सांवर हिरणला रे हां, वाघ रोज गज सीह । नाठा त्रोठा मांडलै रे हां, आव्या बलवाने वीह गरि०११॥ तू पिण तिहां उभौ रह्यौ रे हां, दव देखी भय भीत । सिसलौ तिहां इक बापड़ी रे हां, न लहै ठांम सु रीत रि०१२॥
॥ ढाल ४॥ कांन खुजालण तेतलै रे, गज उपाइयो पाग। तिण सिसलै तिहां पग तलै रे, इहां दीठौ रहिवा लाग ॥१॥ श्री वीर कहै विख्यात, तें दुख पाम्या बहु भांत । कांई न संभारै वात रे, मेघमुनि कांई न संभारै रे बात ॥२॥