Book Title: Jinaharsh Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
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श्रावक करणी स्वाध्याय
५२१ ते भक्षण न करी किम, काचा कउला फल मत जिमै ॥१०॥ रात्रिभोजन ना बहु दोस, जाणि ने करिज संतोष । साजी साबू लोह नै गली, मधु धाहड़ी म वेचे वली ॥११॥ चलि म कराये रांगण पास, दपण घणा कह्या छ तास । पाणी गलीजे वे वे वार, अणगल पीधां दोष अपार ॥१२॥ जीवांणी ना करे जतन्न, पातिक छोड़ि करीजे पुन्न । छाणा इंधन चूल्हौ जोई, बावरज जिम पाप न होइ ॥१३॥ घृत नी परि वावरिज नीर, अणगल नीर म धोए चीर । बारह व्रत सूधा पालिजै, अतिचार सगला टालिजै ॥१४॥ कहिया पनरह करमादांण, पाप तणी परिहरिज खांण । सीस म लेजे अनरथ दंड, मिथ्या मैल म भरिज पिंड ॥१॥ समकित सुध हियडै राखिजै, वोल विचारी ने भाखिजै । उत्तम ठामै खरचिजै वित्त, पर उपगार करै सुभचित्त ॥१६॥ तेल तक घृत ध नै दही, उघाड़ा मत मेल्हे सही। पांचै तिथि म करे आरंभ, पालै सील तजे मन दंभ ॥१७॥ दिवसचरम करिजै चौविहार, च्यारे आहार नौ परिहार । दिवस तणा आलोए पाप, जिम भाजै सगला संताप ॥१८॥ संध्या आवश्यक साचबै, जिनवर चरण सरण भव भवे । च्यारै सरणा करि दृढ़ हुए, सागारी अणसण ले सुए ॥१६॥ करे मनोरथ मन एहवा, तीरथ सेजुजै जेहवा । समेतसिखर आबू गिरनार, भेटिसि हूं कदि धन अवतार ॥२०॥

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