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शातिनाथ स्तवनानि
१८५ जी हो प्राण हुस्यइ तउ पाहुणा, जी हो हत्या लेइसि तेह ॥ ‘जी हो गय कहइ द्य तुझ भणी, जीहो मेवा ने मिष्ठान । - जी हो जे जे भावइ जे गमइ, जी हो परघल
ो परघल लइ पकवान ॥११॥४ जी हो भाखड़ ताम होलावड़उ, जी हो सांभलि नृप अवतंस । जी हो भावह नहि मझ संखडी.जी होमझ आहार छह मंस ॥
जी हो आमिस तउ न मिले कीहां, जी हो वरतइ म्हारी आण। __ जी हो एहनइ दोघउ जोइयइ जी हो ते विणि न रहइ प्राण॥
जी हो एक राखु एक ने हणं, जी हो इम किम दया पलाय।।
जी हो बेनइ राख्या जोईयइ, इणिपरि चिंतइ राय ॥१७सु।। । जी हो तु मुझ देह नउ आपिसु, जी हो एहनइ मांस आहार । __जी हो ए पिणि त्रिपतउ थाइस्यइ, जी हो कीधउ एह विचार॥
' जी हो तुरत आणाव्यउ बाजूअर, जी हो पाली लीधी हाथ । ___जी हो एह बरावरि आपिघउ, जी हो सांभलि तुं नरनाथ ।।
जी हो राणी ऊभी वीनवे, जीहो वीनवइ सचिव प्रधान । जी हो अम्हे शरीर नउ आपिसु, जी हो एहनइ मांसनउ दान।।
__ ढाल|| विमल जिन माहरइ तुम सुं प्रेम ।। एहनी ३ आवी ऊभवउ आगलइंजी, पोतानउ परिवार । 'आमिष आपउ अम्ह तणउ जी, वीनतड़ी अवधारि ॥ २१ ॥ नरेसर तुं मोटउ दातार, तुझ समवड़ि कोई नहीं जी। इणि ससार ‘मझारि, नरेसर तुं मोटउ दातार ॥ . सहु वांछइ बहु जीवीयइ, मरण न वांछे कोइ । ।