Book Title: Jinaharsh Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 586
________________ ५१६ जिनहर्प ग्रन्थावली सयण सनेही हा कयं पण राखा मा० जे सुख लीणा हो के छह न दाखो |मा० नेम नहेजो हो के निपट निरागी मा० कये अवगुणे हो के मुझ ने त्यागी ।मा०२|| सासू जाया हो के मंदिर आवो मा० विरह बुझायो हो के प्रेम वनावा मा० कांइ वनवासी हो के काइ उदासी मा० . जोवन जासी हो के फेर न आसी मा०।३।। जोवन लाहो हो के बालम लीजे मा० अंग उमाहो हो के सफल कहीजे मा० हुँ तो दासी हो के आठ भवां री मा० नवमें भव पण हो के कामणगारी मा०४॥ राजुल दीक्षा हो के लही दुख वारे मा० दियर रहनेमी हो के तेहने तारे ।मा०। नेम ते पहला हो के केवल पामी मा० कहे जिनहर्ष हो के मुगतिगामी ।मा०५॥ __ गजसुकमाल मुनि लज्झाय वासदेव हेव उछव करें, दीक्षा तणो अवसाण । - कुमर विराजे पालखी, निहस धुरै नोसाण ॥३०॥ ' वड़ वैरागियो गुरुओ गज सुकुमाल, जीव दया प्रतिपाल ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607