Book Title: Jinaharsh Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
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जिनहर्ष प्रन्थावली देव तत्व नवि ओलख्यड, गुरु तत्व न जाण्यउ । धर्म तत्व नवि सद्दार, हीयह ज्ञान न आण्यउ !॥२सां! मिथ्याची सुर जिन प्रतई, सरिखा करि जाण्या। गुण अवगुण नवि ओलख्यो, वयणे पाखाण्या.॥३सां।। देव थया मोहई ग्रह्या, पासइ रहइ नारी। . कास तणे वसि जे पड्या, अवगुण अधिकारी ॥४सां।। केई क्रोधी देवता, वली क्रोध ना वाया। कइ किणि ही थी वीहतां, हथीयार संवाया ॥५सां।। क्रूर नजर जहनी घणी, देखतां डरीये। । मुद्रा जेहनी एहवी, तेहथी स्यंउ तरोये ॥सां।। आठ करम सांकल जब्या, भमे भवहि मझारो। जनम मरण ग्रभवासथी, पाम्यउ नही पारो ॥७सां। . देव थई नाटिक करइ, नाचइ जण जण आगइ । भेख लई राधा कृष्ण नउ, वली भिक्षा मांगइ ।।८सां।। मुख करि वावइ वांसली, पहिरइ तनु वागा। भावंता भोजन कर, एहवा अम लागा ॥६सां। देखउ दैत्य संहारिया, थया उद्यमवंतो। हरि हरिणांकुस मारीयउ, नरसिंह बलवंतो ॥१०स। - मच्छ कच्छ अवतार लें, सहु असुर विदार्या । दस अवतारे जूजुआ, दश दैत्य संहार्या ॥११सां।। मानइ मूढ मिथ्यामती, एहवा पिणि देवो। . ..
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