Book Title: Jain Bhajan Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ जीवन है पानी की बूंद जीवन है पानी की बूंद कब मिट जाए रे होनी अनहोनी कब क्या घाट जाए रे जितना भी कर जाओगे, उतना ही फल पाओगे करनी जो कर जाओगे, वैसा ही फल पाओगे नीम के तरु में नहीं आम दिखाए रे जीवन है पानी की बूंद... चाँद दिनों का जीवन है, इसमें देखो सुख काम है जनम सभी को मालूम है, लेकिन मृत्यु से ग़ाफ़िल है जाने कब तन से पंक्षी उड़ जाए रे जीवन है पा किस को मने अपना है, अपना भी तो सपना है जिसके लिए माया जोड़ी क्या वो तेरा अपना है तेरा हो बेटा तुझे आग लगाए रे जीवन है पानी की बूंद... गुरु जिस को छू लेते हैं वो कुंदन बन जाता है तब तक सुलगता दावानल, वो सावन बन जाता है आतंक का लोहा अब पारस कर ले रे जीवन है पानी की बूंद... 18

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78