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धर्म का हुवा हाल बेहाल
धर्म का हुवा हाल बेहाल
जमाना बदला बदली चाल, धर्म का हुवा हाल बेहाल |
व्यवहारी व्यवहार मे भुलरहा, निश्चयी निश्चय मे झुल रहा ॥
चल रहे सभी अलटी पलटी चाल ॥ जमाना ।। 1 धर्म का हो रहा प्रदर्शन बाह्य,
अंदर भयी खोकली काया ।
धर्म विरोने बदली चाल || जमाना || 2
भेष ( वेशात्तर) कि पुजा घरघर होय, परीक्षा भावो कि न कोय। नई है चाल नई है ढाल || जमाना ॥3
छा रहा घर घर भौतिकवाद, छिप रहा जिसमे आत्म वाद । कहु क्या है ये पंचम काल ॥ जमाना || 4
सुंदर वस्त्र और आहार विषय इन्द्रीयो कि मौज बहार ॥
इन्ही मे रही धर्म की चाल ॥ जमाना ॥5
भावना अधर्म की बढ रही, शितलता सब मे ही भर रही ॥
न जाने "चंद्र” भविष्य क्या हो हाल ॥ जमाना ॥16
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