Book Title: Jain Bhajan Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 44
________________ यह जग माया का बाजार मन,जन्म जरा तु सुधार, यह जग माया का बाजार, आगे पिछे है कर्मो की मार, जहाँ बचना है दुश्वार ॥ धन दौलत ये महल अटारी, क्षण मे राजा बने भिखारी, चंद दिनो मे यह नाशजाये चेत जरा तु न फंस जाये, प्रभु शरण से करलो उध्दार।यह जग माया का बाजार।।1 आय अकेला जाय अकेला , दुनिया है स्वप्नो का मेला , बंधी मुठ्ठी लेकर आये, हाथ पसारे खाली जाये, मौत भी न करे इतजार।यह जग माया का बाजार।। गर पाना है मुक्ति नगरिया, कदम बढाना उसी डगरिया, जाती जो शिवपुर को है प्यारे, अनंत सुखो का वैभव धारे, “पार्श्व'प्रभु की कर जयकार, लेजाये तुझको भव से पार॥यह जग माया का बाजार।। __ जय जिनेन्द्र 44

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