Book Title: Jain Bhajan Sangraha
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 35
________________ राग मिटा वैराग जगाया, मुक्तिपंथ पर चरण बढ़ाया | भले- बुरे का भाव न रखते, प्रभुवर तो समता मैं रमते || लगे बरसने ओले सीर पर, वर्षा होती रही निरंतर | आंधी ने गिरी शिखर गिराये, पारस प्रभु को कौन डिगाए || सुरनर नरपति मुनिजन देवा, करते प्रभु चरणों की सेवा प्रभु अनंता, प्रभु कथा अनंता कह न सके सुर नरवर सन्ता || पद्मावती सेविका माता, जिसकी महिमा त्रिभुवन गाता | जिसमे प्रभु को सीर पर धारा, रहा भूमंडल सारा || माँ की मूरत मंगलकारी, पुरे मनोकामना सारी | चरण कमल मैं शीश नमाऊ, अपनी बिगड़ी बात बनाऊ || फणधर ने फन- छत्र बनाया, श्री धर्मेंद्र देव हर्षाया | है चिंतामणि ! चिंता चुरो, विघ्न हरो हर इच्छा पुरो || शंकर जैसे हर कंकर मैं, पारस वैसे हर पत्थर मैं | धाम तुम्हारे बने हज़ारो, पुर्शदानी हमें उबारो || शंकेश्वर हो या नागेश्वर, नाकोडा या शिखर गिरिवर | तेरे चमत्कार घर-घर मैं, महिमा व्यापी नगर नगर मैं || मुक्त हुए सम्मेत शिखर से, रक्षक जहा भोमिय सरसे | पहले उनको शीष नामाओ, अपनी यात्रा सफल बनाओ || नाकोडा के भैरव देवा, तुम भक्तो को देते मेवा | झं-झं-झं झंकार कर रहे, सबकी नैया पार कर रहे || नाम तुमारा जिसने धारा, उससे सुभट केसरी हारा | सुमिरन करे नाम जो तेरा,मेट जाए पापो का फेरा || दूर देश क्यों दौड़े तपते, बिगड़े काम बने जो जपते| कलियुग भी सतयुग बन जाए, जो तेरी कृपा हो जाए || भक्तो को भगवान् बनाते, सेवक को श्रीमान बनाते | लोहे को कंचन कर डाले, ऐसे पारस परम निराले || नमस्कार है चमत्कार को, हरो हमारे अन्धकार को | हम घर मंगल, हम घर मंगल,बन जाए हम निर्मल-निशल || 35

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